Motivational
https://youtu.be/UgliJPXS73U?si=y5Edqn6r7vBjvSfR
https://youtu.be/0QfUjW6JY3Y?si=S6pSfsMoeKxXTkz0
https://youtu.be/Wj2G7EO161A?si=OXEVdpPs01lyFtdz
https://youtu.be/jQB6mh6kC7o?si=17v3CCmWiFQaDmWR
https://www.youtube.com/watch?v=bX3c5q-HlT8
https://www.youtube.com/watch?v=WlrlWQGvnfQ
https://www.youtube.com/watch?v=cu7p4S7k_kY
https://youtu.be/kefhPf4FeLU?si=_vqJE50FIm2nGlmH
Success
1) https://youtu.be/vlrQ7jSxPkk?si=RhcQfPJ7YvF6x0lk
2) https://youtu.be/FkWSRGvgz4Y?si=a9UPXwvgiGxaptMO
3) https://youtu.be/ubfG2XUbz1s?si=PVDnsDBGt6sOGuNa
कोई कंपनी ऐसे भी हो सकती है क्या, जिसके प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल दुनिया की आधी आबादी लगभग हर दिन करती हो? चाहे आप सुबह उठते ही क्लोज़ अप से ब्रश करें, नहाते समय लाइफबॉय या लक्स का इस्तेमाल करें, बालों में सनसिल्क या क्लीनिंग प्लस लगाएं या फिर कपड़े धोने के लिए सर्फ, व्हील या रिन का यूज करें और अगर नहा कर निकल गए हों तो फिर पॉन्ड्स लगाइए या फिर ग्लो एंड लवली प्रॉडक्ट एक ही कंपनी का बिकने वाला है। नाम है हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड। और सिर्फ आप ही नहीं बल्कि आप जैसे साढ़े 3 अरब लोग हर रोज यूनिलीवर का कोई ना कोई प्रॉडक्ट इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि यह कंपनी आज दुनिया के 190 से भी ज्यादा देशों में ऑपरेट करती है। या फिर हम कह सकते हैं कि पूरी दुनिया में ही क्योंकि टोटल देश 195 है। पर सवाल ये उठता है की साबुन बेचने से शुरू हुई एक मामूली सी कंपनी आखिर इतनी बड़ी कैसे हो गई कि आज पूरी दुनिया पर राज कर रही है। नाम से स्वदेशी लगने वाली यह कंपनी क्या वाकई में इंडियन है या फिर इसकी सच्चाई कुछ और ही है। और सबसे जरूरी बात इस मुकाम तक पहुंचने के लिए HCL को क्या क्या स्ट्रगल्स और लीगल बैटल्स फेस करने पड़े हैं। सब कुछ हम बहुत डिटेल में जानने वाले हैं आज के इस कहानी में।
तो दोस्तों हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड को पुरी तरह से समझने के लिए हमें समय का पहिया घुमाकर 1885 में जाना होगा। जहां ब्रिटेन में रहने वाले दो भाई विलियम हेसकेथ लीवर और जेम्स डॉर्सी लीवर एक साथ मिलकर लीवर ब्रदर्स नाम की एक कंपनी शुरू करते हैं। यह कंपनी सनलाइट नाम से साबुन बनाती थी जो की इंग्लैंड के साथ साथ इसके आसपास के देशों में भी काफी पॉपुलर था। असल में यह साबुन एक क्लीनिंग प्रोडक्ट होने के साथ साथ समाज में हाइजीन और हेल्थ का भी मैसेज देता था जो की लोगों को खूब पसंद आता। इसके बाद 1888 में कोलकाता के पोर्ट पर सनलाइट साबुन से भरे बक्से उतारे जाते हैं और यहीं से लीवर ब्रदर्स की इंडिया में एंट्री होती है। अभी कुछ ही समय बीता था की यह साबुन भारतीय लोगों के बीच में भी खूब पॉपुलर हो जाता है और इसी कामयाबी को देखते हुए 1885 में लीवर ब्रदर्स यहां अपने दूसरे प्रोडक्ट लाइफबॉय को भी लॉन्च कर देते हैं। और दोस्तों इन दोनों ही प्रोडक्ट्स के लिए कंपनी को लोगों से बहुत ही अच्छा फीडबैक मिलता है और इस कामयाबी को देखते हुए ही लीवर ब्रदर्स अपने इस बिजनेस को फैलाने में लग जाते हैं। लेकिन इनके सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम आती है रॉ मटेरियल खासकर पाम ऑयल की जिसका इस्तेमाल साबुन बनाने के लिए किया जाता था।
चलिए फिलहाल अब हम आते हैं नीदरलैंड्स में जहां इस टाइम पर दो बिजनेसमैन Jurgens और Van Den Bergh मार्जरीन का बिजनेस कर रहे होते हैं। बेसिकली मार्जरीन एक प्लांट बेस्ड फैट होता है जिसे हमारे देश में डालडा के नाम से जाना जाता है। उस टाइम पर मार्जरीन के बिजनेस में बहुत ज्यादा कंपटीशन हुआ करता था। यही वजह थी की Jurgens और Van Den Bergh 1927 में अपनी अपनी कंपनियों को एक साथ मर्ज कर देते हैं और फिर जो नई कंपनी बनाई जाती है उसका नाम रखा जाता है मार्जरीन। और फिर इसके दो साल बाद सितंबर 1929 में लीवर ब्रदर्स और मार्जरीन एक दूसरे के साथ हाथ मिलाकर यूनिलीवर लिमिटेड की शुरुआत कर देते हैं। अब आप सोच रहे होंगे की साबुन बनाने वाली कंपनी और मार्जरीन बनाने वाली कंपनी का आपस में कनेक्शन क्या हो सकता है। असल में दोस्तों भले ही ये कंपनी अलग अलग इंडस्ट्रीज से थी लेकिन इन दोनों के बीच में एक चीज कॉमन थी पाम ऑयल। साबुन बनाने के लिए भी पाम ऑयल की जरूरत होती थी और मार्जरीन के लिए भी। लेकिन उस टाइम पर पाम ऑयल की भारी किल्लत थी और इसे एक बड़े लेवल पर कलेक्ट करना बहुत ज्यादा मुश्किल काम हुआ करता था। ऐसे में इन दोनों कंपनियों ने अपने प्रॉफिट और रिसोर्सेज को मिलाकर पाम ऑयल प्लांटेशन का फैसला लिया और फिर इस कदम के साथ ही यूनिलीवर लिमिटेड का ग्लोबल एक्सपेंशन काफी तेज हो गया।
कुछ ही सालों के अंदर ये कई नई नई कंट्रीज में एंटर कर चुके थे और इंडिया में तो वो अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट कर ही रहे थे। मतलब की इस टाइम पर एक तरफ भारत में अंग्रेजों से आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था लेकिन दूसरी तरफ ब्रिटिश कंपनियां यहां अपने बिजनेस को मजबूत करने में लगी हुई थी। और फिर इसी टाइम पीरियड के ही आसपास यानी 1931 में यूनिलीवर भारत के अंदर अपनी पहली कंपनी इस्टैबलिश्ड करता है जिसका नाम हिंदुस्तान वनस्पति मैन्युफैक्चरिंग कंपनी रखा जाता है। यह कंपनी डालडा नाम से वनस्पति घी बनाती थी जो की असली देसी घी का सस्ता अल्टरनेटिव था। अब डालडा इंडिया में कितना सक्सेसफुल हुआ था शायद यह एक्सप्लेन करने की मुझे जरूरत नहीं होगी हालांकि डालडा को इंडिया में जो सक्सेस मिली थी वहां तक पहुंचाना यूनिलीवर के लिए आसान बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि इस दौरान इंडिया में स्वदेशी मूवमेंट अपने चरम पर था। जिसके तहत महात्मा गांधी और उनके सपोर्टर्स ने ब्रिटिश प्रोडक्ट्स का बायकॉट करना शुरू कर दिया था। स्वदेशी मूवमेंट की वजह से साबुन, एडिबल ऑयल और इन जैसे बहुत से प्रोडक्ट्स भारत के अंदर ही बनाए जाने लगे, जिससे की थोड़े लो क्वालिटी के होने के बावजूद भारतीय लोग इन्हें ही यूज करते थे। और दोस्तों इस आंदोलन की वजह से यूनिलीवर के सेल्स में भी भारी गिरावट आ गई थी और फिर यही सब देखते हुए यूनिलीवर ने लोकल मैन्युफैक्चरिंग की तरफ कदम बढ़ाया। मई 1934 में उन्होंने मुंबई के अंदर अपनी पहली फैक्ट्री खोली। ताकि इंडिया में मैन्युफैक्चरिंग और एंप्लॉयमेंट ऑपच्यरुनिटीज देकर बायकॉट के इन्फ्लुएंस को कम किया जा सके। इसके अलावा इंडिया में लोकल मैन्युफैक्चरिंग शुरू करने का एक रीजन यह भी था कि ब्रिटेन से इंपोर्ट करने की वजह से इनके साबुन की कीमत काफी बढ़ जाती थी और इस इंपोर्टेड प्रॉडक्ट को इंडिया के ज्यादातर लोग अफोर्ड नहीं कर पाते थे। इसलिए यूनिलीवर ने इस स्ट्रैटेजी की मदद से देसी पहचान बनाने की कोशिश की। साथ ही, कम कीमत में प्रॉडक्ट उपलब्ध कराकर इसने एक लार्ज कस्टमर बेस को टारगेट किया, जो कि कंपनी के लिए काफी प्रॉफिटेबल साबित हुआ।
इसके बाद 1935 में उन्होंने इंडिया के अंदर अपनी तीसरी कंपनी यूनाइटेड ट्रेडर्स लिमिटेड की शुरुआत की, जो कि कपड़े, मेटल और केमिकल्स का इंपोर्ट एक्सपोर्ट करती थी। इसके बाद आया 1956, जब हिंदुस्तान वनस्पति मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, लीवर ब्रदर्स इंडिया और यूनाइटेड ट्रेडर्स लिमिटेड इन तीनों को ही मर्ज करके हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड का गठन किया गया। हालांकि जून 2 हज़ार 7 में यह नाम बदलकर हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड यानी कि एचयूएल कर दिया गया था। लेकिन इस मर्जर की कहानी उतनी सिंपल नहीं है, जितनी नजर आ रही है। क्योंकि देश को 1947 में आजादी मिल चुकी थी और उस समय भारत में फॉरेन कंपनीज के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जा रहा था। विदेशी ओनरशिप पर नए नियम और कानून लगाए जा रहे थे, जिसके चलते बाहरी कंपनियों को अपने ऑपरेशंस में कई सारे बदलाव करने पड़े। इसी से ही परेशान होकर यूनिलीवर ने इन तीनों कंपनीज को आपस में मिला दिया और हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड में इंडियंस को 10 परसेंट इक्विटी दे दी गई, ताकि कंपनी के ऊपर लगा विदेशी ओनरशिप का धब्बा हटाया जा सके। साथ ही इन्होंने पहली बार प्रकाश टंडन नाम के एक ऐसे आदमी को कंपनी का डायरेक्टर बनाया जो की इंडिया से थे। इतना ही नहीं 1955 तक कंपनी में इतने सारे भारतीयों को हायर किया जा चुका था की इसके सिक्सटी फाइव परसेंट मैनेजर इंडिया के ही हुआ करते थे। इस तरह से कंपनी ने एक इंडियन ब्रांड के रूप में अपनी पहचान बनाने की कोशिश की और दोस्तों इन्हीं सभी स्ट्रैटेजिस के चलते ही आज भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो की हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड को एक इंडियन ब्रांड समझते हैं। जबकि आज भी यह यूनिलीवर पीएलसी नाम की एक ब्रिटिश कंपनी की सब्सिडियरी है। खैर, वापस कहानी पर आएं तो इन सभी स्ट्रैटेजिस की वजह से भारत एचयूएल के लिए एक बहुत ही प्रॉफिटेबल मार्केट साबित हो रहा था क्योंकि यहां कंपटीशन बहुत कम थी और पॉसिबिलिटीज बहुत ही ज्यादा। इसीलिए कंपनी अब एफएमसीजी सेक्टर को टेकओवर करने में लग गई। 1968 में इन्होंने सर्फ नाम से अपना वाशिंग पाउडर बनाया तो वहीं 1964 में अन्य घी और सनसिल्क शैम्पू को लॉन्च किया और फिर 1966 तक यह बेबी फूड सेगमेंट में भी एंटर कर चुके थे। हर साल नए प्रोडक्ट्स को लॉन्च करना, कंपनी को एक्वायर करना और नए नए सेक्टर्स को एक्सप्लोर करना मानो इनका मिशन बन गया था। सब कुछ उम्मीद से ज्यादा अच्छा चल रहा था। लेकिन इसके अगले ही साल कुछ ऐसा हुआ की कंपनी बंद होने के कगार पर पहुंच गई। एक्चुअली 1973 में सरकार ने साबुन और वनस्पति जैसे कई सारे प्रॉडक्ट्स पर प्राइस कंट्रोल लगा दिए ताकि इन्फ्लेशन को कम किया जा सके। इस दौर में चाहे भारतीय हो या विदेशी, हर तरह की कंपनियों के लिए बिजनेस करना बहुत मुश्किल हो गया था क्योंकि सरकार ने प्राइस को इतना कम कर दिया था कि ज्यादातर कंपनियां भारी लॉस में जाने लगी थी। इन लॉसेस को कवर करने के लिए उस टाइम कंपनी के चेयरमैन टी। थॉमस ने एक सस्ता साबुन मार्केट में उतारा, जिसका नाम था जनता। लेकिन ऐसा करने से भी नुकसान को कोई खास रिकवर नहीं किया जा सका। कुछ समय बाद इंडियन गवर्नमेंट ने इस प्राइस कंट्रोल को खुद ही हटा दिया, जो कि एचयूएल के लिए एक बहुत बड़ी राहत साबित हुई। क्योंकि टी। थॉमस का कहना था की अगर यह प्राइस कंट्रोल कुछ और समय तक चलता तो एचयूएल को भारत से एग्जिट लेना पड़ सकता था। खैर इस प्रॉब्लम से तो वह निकल गए लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जिसने कंपनी को और भी बड़ी प्रॉब्लम में डाल दिया। असल में 70 20 के दौरान सरकार ने एक पॉलिसी बनाई थी कि मल्टीनेशनल कंपनी को अपना मेजॉरिटी स्टेक यानी की 51 पर्सेंट से ज्यादा ओनरशिप भारतीयों के लिए छोड़नी होगी। यही वो पॉलिसी थी जिसकी वजह से कई बड़ी कंपनियों जैसे कोका कोला और सेल ने भारत से अपना बिजनेस हटा लिया था। लेकिन हिंदुस्तान यूनिलीवर अपने इस बसे बसाए साम्राज्य को छोड़कर नहीं जाना चाहता था। इसलिए उन्होंने किसी तरह से सरकार को कन्विंस कर लिया की उनकी फिफ्टी वन परसेंट की ओनरशिप उन्हीं के पास ही रहने दे। लेकिन सवाल तो यह है ना की आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे? असल में सरकार ने यूनिलीवर के सामने यह शर्त रखी थी की अगर आप फिफ्टी परसेंट की हिस्सेदारी खुद रखना चाहते हैं तो आपको अपने बिजनेस के टर्नओवर का 60 परसेंट ऐसे काम पर खर्च करना होगा जिसमें भारत देश को फायदा हो। साथ ही आप जो भी सामान बनाएंगे उसका 10 परसेंट विदेशों में भी बेचेंगे। जिससे की इंडिया दुनिया के दूसरे देशों में भी नाम कमा पाए। और दोस्तों एचयूएल की वजह से इकॉनमी को बेहतर होता हुआ देख डील फाइनल की गई और मेजॉरिटी शेयर उन्हीं के पास ही रहने दी गई। इसके बाद 1972 से 1986 के बीच यूनिलीवर ने लिप्टन, ब्रुक, बॉन्ड और पॉन्ड्स जैसी कंपनीज को एक्वायर करके अपने ग्रुप में शामिल कर लिया था। अब एक तरफ तो।
4) https://youtu.be/S5z6NYRwH2k?si=9TJ8BnITJFwbE23E
घड़ी, डिटर्जेंट पाउडर और केक। पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करे। दोस्तो, घड़ी डिटर्जेंट के इस टैगलाइन को तो आज हर कोई जानता है, लेकिन जब इस ब्रांड को शुरू किया गया था तब कंपनी के पास इतने पैसे भी नहीं थे की वो अपना एडवर्टाइजमेंट कर सके। इसीलिए दो भाइयों ने हिम्मत जुटाई और कभी पैदल तो कभी साइकिल से इसे घर घर जाकर बेचना शुरू किया। लेकिन जब घड़ी डिटर्जेंट मार्केट में आया तब इसे एक तरफ से निरमा से टक्कर मिल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ इसके सामने हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसा बड़ा जायंट सर्फ और व्हील के साथ में खड़ा था। लेकिन फिर घड़ी ने ऐसा किया क्या की ये आज इंडिया का वन ऑफ द लार्जेस्ट डिटर्जेंट ब्रांड बन गया। आखिर इस कंपनी ने कौन कौन से स्ट्रैटेजी अपनाई और ये सफर कितना स्ट्रगल से भरा रहा। चलिए सब कुछ जानते हैं आज के इस वीडियो में। तो दोस्तों अगर हम डिटर्जेंट की हिस्ट्री पर नजर डालें तो ग्लोबल लेवल पर इसकी शुरुआत वर्ल्डवाइड दो के टाइम पर ही हो गई थी। लेकिन तब यह इंडियन की पहुंच से काफी दूर था। लेकिन फिर आजादी के 10 साल बाद यानी 1957 में स्वास्तिक ऑयल मिल्स नाम की एक कंपनी ने सिंथेटिक डिटर्जेंट बनाना शुरू किया और इस तरह से भारत में इसकी शुरुआत तो हो गई लेकिन अब भी यह बहुत ही कम घरों में अपनी जगह बना पाया था। हालांकि 1959 में जब हिंदुस्तान यूनिलीवर ने इंडिया में अपना फेमस सर्फ एक्सेल लॉन्च किया तब इसे बहुत ही तेजी से एडवर्टाइज किया गया। जिसके चलते अब लोगों के बीच में डिटर्जेंट पाउडर काफी तेजी से पॉपुलर होने लगा। लेकिन हां अभी तक इंडिया की ज्यादातर जनसंख्या गरीब थी इसलिए सर्फ एक्सेल सिर्फ इलीट क्लास की ही फैमिली को टारगेट करता था। क्योंकि इसके डिटर्जेंट इतने एक्सपेंसिव थे कि इसे मिडिल या लोअर मिडिल क्लास अफोर्ड नहीं कर पाते थे। और फिर इसी प्रॉब्लम को ही समझते हुए गुजरात के करसन भाई पटेल ने निरमा डिटर्जेंट को लॉन्च किया था। जो की कुछ ही सेकंड्स में इंडिया का सबसे ज्यादा बेचे जाने वाला डिटर्जेंट ब्रांड बन गया था। अब दोस्तों निरमा की यह सक्सेस स्टोरी कानपुर के मुरलीधर और विमल कुमार ज्ञानचंदानी नाम के दो भाइयों तक पहुंची और इससे वह काफी इंस्पायर हुए। उन्होंने सोचा की क्यों ना अपने पिता के व्यापार को आगे बढ़ाया जाए जो कि उस समय ग्लिसरीन से साबुन बनाने का काम किया करते थे। इसी सोच के ही साथ 1987 में कानपुर के शास्त्री नगर में रहने वाले इन दोनों भाइयों ने फजलगंज फायर स्टेशन के पास डिटर्जेंट की एक छोटी सी फैक्ट्री खोली। जिसे नाम दिया गया था श्री महादेव सोप इंडस्ट्री और फिर इसे फैक्ट्री में ही बनाया गया सबसे पहला घरेलू डिटर्जेंट पाउडर। अब दोस्तों फजलगंज की यह फैक्ट्री भले ही छोटी थी पर इन भाइयों के अरमान काफी बड़े थे इसलिए वो पूरी मेहनत और जुनून के साथ काम में जुट गए। हालांकि लंबे समय तक उनका व्यापार नहीं चल पाया क्योंकि उनके सामने निरमा और हिंदुस्तान यूनिलीवर के व्हील जैसे कई सारे पॉपुलर प्रॉडक्ट्स थे, जिन्हें पछाड़ कर आगे निकल पाना बिल्कुल भी आसान नहीं था। हालांकि इस बात का अंदाजा उन्हें पहले से ही था, इसीलिए उन्होंने कभी भी धैर्य नहीं खोया और दुकानदारों से लेकर गली मोहल्ले में लोगों को डिटर्जेंट खरीदने के लिए मनाते रहे। हालांकि जब काफी कोशिशों के बाद भी मुनाफा नहीं हो पा रहा था तो वो समझ गए कि उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जो बाकी की कंपनी नहीं कर रही हैं। उस दौर में जहां ज्यादातर वाशिंग पाउडर पीले या फिर नीले रंग के होते थे, इन्होंने सफेद रंग का वाशिंग पाउडर बनाकर बाजार में उतारने का फैसला किया। इसके अलावा ज्ञानचंदानी ब्रदर्स ने एक मजबूत और जुबान पर चढ़ जाने वाली टैगलाइन भी दी। पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें। यह टैगलाइन लोगों को बहुत पसंद आई और उन्होंने सोचा कि जब कंपनी को अपने प्रोडक्ट पर इतना भरोसा है तो फिर क्यों ना इसे हम एक बार आजमा कर ही देखें। और फिर जब लोगों ने इसका इस्तेमाल किया तो इस डिटर्जेंट की भर भर के झाग और सफेदी लोगों को खूब पसंद आई। अब कंज्यूमर्स का भरोसा इस प्रोडक्ट पर बढ़ने लगा और धीरे धीरे कानपुर समेत आसपास के इलाकों में भी घड़ी का वाशिंग पाउडर और केक पॉपुलर होने लगा। कानपुर में मिली सफलता के बाद इसके फाउंडर्स ने सोचा कि क्यों ना इसे पूरे यूपी में डिस्ट्रीब्यूट किया जाए, क्योंकि ओबवियसली यह इंडिया का सबसे बड़ा स्टेट जो है। आपको बताते चलें की टोटल एफएमसीजी सेल्स का 70 परसेंट कंट्रीब्यूशन सिर्फ यूपी से ही होता था। ऐसे में एक्सपेरिमेंट करने के लिए इससे अच्छी मार्केट तो कोई हो ही नहीं सकती थी। लेकिन दोस्तों अच्छी होने के साथ साथ यह एक टफ मार्केट भी था क्योंकि यहां डिमांड हाई होने की वजह से कंपटीशन भी बहुत ज्यादा था। ऐसे में घड़ी ने इस प्रॉब्लम से निपटने के लिए एक बहुत बड़ा स्टेप लिया। क्योंकि जहां बाकी कंपनीज अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स को सिर्फ छह परसेंट तक का कमीशन दे रही थी, घड़ी ने इसे बढ़ाकर नौ परसेंट देना शुरू कर दिया। अब ज्यादा कमीशन का असर यह हुआ की दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स के मुकाबले डिस्ट्रीब्यूटर्स घड़ी को ज्यादा प्रेफर करने लगे और यही वजह थी की घड़ी की अवेलेबिलिटी और विजिबिलिटी मार्केट में बहुत ज्यादा बढ़ गई और अब यह गली मोहल्ले की हर छोटी से छोटी दुकान पर ईजिली मिलने लगा था। जिससे कंपनी की सेल्स बहुत तेजी से बढ़ने लगी। लेकिन दोस्तों ज्यादा कमीशन देने का मतलब यह भी था की घड़ी को आप बहुत कम प्रॉफिट के साथ में अपना बिजनेस रन करना पड़ रहा था और इनके सामने लॉस में जाने का भी खतरा मंडराने लगा। और दोस्तों इस तरह के प्रॉब्लम से ही निपटने के लिए उन्होंने खर्च में कई तरह की कटौती करनी शुरू कर दी। जैसे की कंपनी ने ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट को कम करने के लिए हर 200 से 300 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटी यूनिट या फिर डिपो बनाना शुरू कर दिया। जिससे ना सिर्फ ट्रांसपोर्टेशन का खर्च कम हुआ बल्कि लोगों तक प्रोडक्ट्स पहले के मुकाबले और भी जल्दी पहुंचने लगा। इस तरह से कुछ ही सालों में यूपी के अंदर घड़ी डिटर्जेंट सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला ब्रांड बन गया और फिर इस कामयाबी ने कंपनी को आसपास के राज्यों में भी एंटर करने को मोटीवेट किया। जिसके बाद से बिहार, मध्य प्रदेश और ऐसे ही यूपी से सटे कई स्टेट में घड़ी को बेचना शुरू किया गया। अब दोस्तों यूपी की वजह से मार्केट का पूरा आइडिया तो घड़ी डिटर्जेंट को लग ही गया था। इसीलिए धीरे धीरे दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी इसने पैर पसारने शुरू कर दिए और फिर घड़ी ने दो हज़ार दो तक 500 करोड़ रुपए की सेल्स को अचीव कर लिया था, जो कि कंपनी के लिए बहुत बड़ी कामयाबी थी। इसके बाद से कंपनी ने और भी कई सारे प्रोडक्ट्स को बनाना शुरू कर दिया और यह एफएमसीजी मार्केट में अपनी प्रेजेंस को स्ट्रांग बनाने में लग गए। ज्ञानचंदानी ने अपनी सभी प्रोडक्ट्स को एक दूसरे के साथ इंटीग्रेट करने के लिए साल दो हज़ार 5 में श्री महादेव सोप इंडस्ट्री का नाम बदलकर रोहित सर्फेक्टेंट प्राइवेट लिमिटेड यानी कि आरपीएल कर दिया, ताकि इनके ऑपरेशंस को आसान बनाया जा सके। इसी दौरान कम इन्नोवेशन और बदलते मार्केट ट्रेंड की वजह से निरमा धीरे धीरे अपनी पोजीशन खोता जा रहा था। जिसका भरपूर फायदा घड़ी को मिलने लगा और फिर घड़ी निरमा के मार्केट शेयर को कैप्चर करता चला गया। साथ ही घड़ी ने कई सारे और सेक्टर्स में भी अपने प्रोडक्ट्स लॉन्च किए। जैसे कि साल दो हज़ार 10 में जेएसपीएल ने हरिद्वार में एक यूनिट की शुरुआत की, जहां से हेयर ऑयल, शैम्पू, टूथपेस्ट, मॉइस्चराइजर, शेविंग क्रीम और लिक्विड हैंड वॉश की तरह नए नए प्रोडक्ट्स को मार्केट में उतारा गया। इसके नेक्स्ट ईयर यानी दो हज़ार 11 में घड़ी, व्हील और निरमा जैसे कई सारे ब्रांड्स को पीछे करते हुए इंडियन डिटर्जेंट मार्केट का लार्जेस्ट प्लेयर बन गया। लेकिन ये सब हुआ कैसे? क्या सिर्फ डिस्ट्रीब्यूटर्स को ज्यादा कमीशन देकर और व्हाइट डिटर्जेंट बनाकर कोई कंपनी इतने कम समय में इतना ज्यादा सफल हो सकती है?
5) https://youtu.be/3AraDFn7XVA?si=3d_20BqtXMcGxzpu
6) https://youtu.be/jgOD-cinMOc?si=igkZP29a0u46b2EU
Horror
https://youtu.be/najzPfzxc7k?si=88iZFNzulwMVNNgW
2) https://youtu.be/FaMlR85yisQ?si=nWgYpmGK6-LJhT8i
5) https://youtu.be/AXpzibmOprg?si=ZYIS3SWP6s6Oc99g
इस कहानी की लेखिका है सोनिया सैनी। आधी रात का समय था। मैं अपने कमरे में सोया हुआ था। अचानक मुझे किसी के फोन पर जोर जोर से बातें करने की आवाज सुनाई देने लगी। मैं उठ कर ड्राइंग रूम में आया तो देखा मम्मी कान पर फोन लगा कर किसी से बातें कर रही थी। अरे शालू, मुझे तो बहुत चिंता होती है जिम्मी की। वो क्या करेगा? कॉलेज के बाद कैसे घर की जिम्मेदारी उठाएगा। घर में ऐसे ही पैसों को लेकर दिक्कत चल रही है। अगर ये कुछ कर नहीं पाया तो कैसे होगा? अरे सुमन तू कब से इस चीज के बारे में सोच सोच कर पागल हो रही है। तूने किसी से बात की। किसी अच्छे ज्योतिषी से बात कर कि तेरे घर की कंडीशन कैसे सुधर सकती है? जिम्मी का करियर का क्या भविष्य है? अब मैं ज्योतिषी ढूंढते फिरूं यही काम। बच गया ना मेरा। अरे पागल, तुझे कहीं नहीं जाना। घर पर ही बैठ और यह ऐप एस्ट्रोटॉक डाउनलोड कर। मुझे खुद यह ऐप इंस्टाग्राम पर ऐड देखकर मिली। एस्ट्रोटॉक यानी कि ज्योतिषी, वह भी फोन पर। हां जी, अब दिक्कत और सवाल सबकी जिंदगी में होते हैं। किसी को शादी से रिलेटेड, किसी को रिलेशनशिप में, किसी के घर में पैसों की दिक्कत, किसी का कुछ काम नहीं हो रहा। किसी भी दिक्कत के लिए इधर काफी सारे ज्योतिषी हैं। बात कर लो और वह तुरंत तुम्हारे सवाल का जवाब देंगे या तुम्हें सॉल्यूशन बता देंगे। यार यह सही है। सबसे बढ़िया बात, मैं जब खुद अपना घर बनवा रही थी तो बहुत दिक्कत आई थी। तब मैंने यहां एक ज्योतिषी जी से बात की थी। उनसे मैं कुछ पूछती उससे पहले उन्होंने सिर्फ डेट ऑफ बर्थ और टाइम मांगा और वो देते ही तुरंत पूछ लिया। घर से रिलेटेड कुछ प्रॉब्लम्स चल रही हैं। है सिर्फ डेट ऑफ बर्थ और टाइम से मैं इसमें के बारे में पूछ सकती हूं और घर के पैसों की दिक्कत से रिलेटेड और अरे कुछ भी। अब देखो हम सब की लाइफ में डाउट्स और इश्यूज तो आते हैं ना। कोई रिलेशनशिप में तो उसे ये समझना होता है की लॉन्ग टर्म है या नहीं। कोई सिंगल है तो ये समझना होता है की कब आएंगे रिलेशनशिप में, किसके साथ आएंगे जॉब कब लगेगी सेटल कब होंगे। अच्छा मैं एक काम कर देती हूँ। अपने एस्ट्रोटॉक एप का डाउनलोड लिंक डिस्क्रिप्शन में डाल देती हूँ। वहां से डाउनलोड कर लो और सबसे बेस्ट बात पहली चैट फ्री मिल जाएगी मेरे लिंक से। शालू देख ऐसा वैसा कोई कदम मत उठाना। मैं आ रही हूँ। सुन सुन रही है ना तू? मैं आ रही हूँ मम्मी। किससे बातें कर रही हो इतनी रात को? शालू आंटी का फोन आया है। वो बहुत रो रही है। कहीं कुछ कर ना ले। मुझे जाना होगा बेटा। मम्मी शालू आंटी मर चुकी है। वो आपको फोन कैसे कर सकती है? होश में आई है। मैं सच कह रही हूँ बेटा। सच में उनका फोन आया था। मैंने गुस्से में फोन उनके हाथ से लेकर रिसीवर नीचे रख दिया। तभी एक बार फिर फोन की घंटी घनघना उठी। यूं आधी रात को अचानक फोन की घंटी की आवाज सुनकर मैं कांप उठा था। कांपते हाथों से मैंने फोन उठाकर हैलो बोला तो दूसरी तरफ से किसी औरत के सिसकने की आवाज सुनाई देने लगी। फोन मेरे हाथ से छूट गया और मैं पसीने पसीने होकर जमीन पर थप से बैठ गया। फोन का रिसीवर हवा में लटका हुआ था। फिर भी लगातार फोन के बजने की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। उस रात पहली बार मुझे समझ में आया कि रो रो में डर महसूस होना क्या होता है। शालू आई थी। थोड़ी देर पहले कह रही थी तू भी मेरे साथ चल। देख, तू उस दिन मुझे लेने नहीं आई। अकेला छोड़ दिया मुझे। लेकिन मैं तुझे अकेला नहीं छोडूंगी। अपने साथ ले जाऊंगी। मम्मी की बातें सुनकर मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था। साल 1898 की बात है। हम अपने बंगले नुमा घर में ठाठ बाट से रह रहे थे। पापा का बिजनेस खूब फैल रहा था। हमारे घर में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। मम्मी की एक सहेली थी शालू आंटी, जो हमारे सामने वाले घर में रहती थी। शालू आंटी अक्सर दोपहर के समय हमारे घर आती और मम्मी के साथ बैठकर घंटों बातें करती। मैं उस समय 12वीं में पढ़ता था। उनकी बातें समझने की ना मेरे पास समझ थी ना ही समय। लेकिन इतना जरूर समझ में आता था की आंटी अक्सर मम्मी से बातें करते हुए रोने लग जाती थी। रात के समय उनके घर से अक्सर झगड़ा की आवाज भी सुनाई देती थी। जब उनके घर से रोने पीटने और झगड़ने की आवाज आती तो मम्मी दौड़कर उनके घर पहुंच जाती और फिर कुछ देर बाद सब कुछ शांत होने के बाद ही लौट कर आती। धीरे धीरे समय बीत रहा था। एक रोज की बात है। दिसंबर की ठंडी रात थी। मेरी छोटी बहन गुड्डी को तेज बुखार था। बाहर हर तरफ कोहरा छाया हुआ था। अचानक रात के 11:00 बजे शालू आंटी के यहां से रोने पीटने की आवाजें सुनाई देने लगी। कुछ देर के शोरगुल के बाद हमारे घर के लैंडलाइन पर घंटी बजी तो मैंने फोन उठा लिया। बेटा मम्मी से बात करा। मम्मी तो गुड्डी के पास है आंटी। उसे तेज बुखार है। फोन पर भी नहीं आ सकती। आंटी के इतना कहने पर मैंने इशारे से मम्मी को फोन पर आने के लिए कहा तो मम्मी ने मुझे इशारे से फोन रखने के लिए कह दिया। मम्मी के कहे अनुसार मैंने फोन काट दिया। मियां बीबी का रोज का हो गया है। कोई कितने दिन तक बीच बचाव करेगा। अब मैं अपनी बेटी की तबीयत देखूं या इनकी राम कहानी सुनूं? सुबह सुन लूंगी। कौन सा वो कहीं भागी जा रही है। मम्मी को कोई अंदाजा नहीं था की आज शालू आंटी ने उन्हें आखिरी बार फोन किया है। कुछ देर बाद उनके घर से जोर जोर से चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई देने लगी और फिर सब शांत हो गया। उस रात मां उनके घर नहीं गई। सुबह पांच बजे तक पूरे मोहल्ले में कोहराम मच गया था। यह खबर सुनकर मम्मी को गहरा आघात लगा था। वह अक्सर रातों को उठ कर बैठ जाती और दरवाजा खोल कर बाहर की तरफ भागने लगती। जब पापा पूछते कि कहां जा रही हो तो कहती शालू मुझे बुला रही है। उसके यहां झगड़ा हो गया है। उसे कुछ हो जाएगा। मुझे जाने दो। पापा को यही लगता था की मम्मी को शालू। आंटी को उस रात ना बचा पाने का पछतावा है इसीलिए वह ऐसे रिएक्ट कर रही है। धीरे धीरे हमारे घर का माहौल बदलने लगा। पापा का चलता हुआ बिजनेस ठप्प पड़ने लगा। अपने बिजनेस को बचाने के लिए पापा ने जो भी कर्ज लिया था, वह भी डूब गया। अब पापा के पास कोई और चारा नहीं बचा था। अंत में उन्होंने अपना मकान बेचने का डिसीजन ले लिया। एक तरफ हमारा मकान जा रहा था, दूसरी तरफ कुछ ऐसा घट रहा था, जिस पर यकीन करना मुश्किल था। मम्मी को डिप्रेशन नहीं था। उन्हें वाकई शालू आंटी दिखाई दे रही थी और इस बात का एहसास मैं खुद कर चुका था। मैं पापा को मम्मी के बारे में बता कर टेंशन नहीं देना चाहता था, लेकिन अब चीजें नियंत्रण से बाहर हो रही थी। उस रोज मैंने पापा को सब कुछ सच बताने का निर्णय लिया। उसी शाम पापा घर आए तो उनके चेहरे पर खुशी झलक रही थी। क्या बात है पापा, आज आप खुश लग रहे हैं? बेटा धर्मेश अपना बंगला मुझे आधे दाम में देने के लिए तैयार हो गया है। कहता है शालू चली गई। अब वो इस घर में नहीं रहना चाहता। बस जल्द से जल्द यहां से दूर जाना चाहता है। बेटा, हमारे लिए इससे खुशी की बात क्या होगी। हमें इसी मोहल्ले में सामने वाला घर मिल गया। वो भी आधे दाम में। हम उस घर में नहीं रहने वाले। पापा मम्मी को शालू आंटी दिखाई देती हैं। मम्मी की हालत बिगड़ रही है और आप कह रहे हैं हम उसी घर में रहने जाएंगे जहां उनकी मौत हुई है। ऐसा कोई घर नहीं जहां कोई मरा ना हो। वहम की बात है ये सब। बेटा और तेरी मां को डिप्रेशन हुआ है। उसे इलाज की जरूरत है बस। और सबसे बड़ी बात मैं पैसा दे चुका हूं। हम कल ही वहां शिफ्ट हो जाएंगे। पापा कुछ सुनना नहीं चाहते थे, इसलिए दो दिन बाद हम शालू आंटी के बंगले में शिफ्ट हो गए थे। उस बंगले में बिताए हुए दिन मेरे जीवन के सबसे मनहूस दिनों में से एक है। मम्मी की हालत पहले से काफी खराब थी। पापा अपने कमरे में सोए हुए थे। मैं और छोटी मम्मी के साथ कमरे में सोए थे। अचानक आधी रात गए। हमें किसी के जोर जोर से चीखने और रोने की आवाज सुनाई देने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई किसी को बुरी तरह से मार पीट रहा हो। घबरा कर मेरी नींद टूट गई। जब मैं अपने बिस्तर से उठा तो पाया की बिस्तर पर छोटी बहन और मम्मी दोनों ही नहीं है और पूरे बंगले में अंधेरा पसरा हुआ है। मैंने टॉर्च उठाया और मम्मी और गुड्डी को आवाज लगाते हुए कमरे से बाहर की और जाने लगा। बेडरूम से बाहर निकल कर मैं जैसे ही हॉल में आया वो नजारा देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ गया। गुड्डी के बाल बिखरे हुए थे और वो अजीब से डरावने भाव चेहरे पर लेकर। घूर घूर कर मम्मी को देख रही थी। मम्मी कमरे के कोने में खड़ी हुई सिसक रही थी। अचानक गुड्डी अजीब ढंग से दीवार पर चलने लगी। मम्मा! यह क्या हो गया गुड्डी को? मम्मा, होश में आओ। गुडी गुडी नहीं है वो। वो चालू है। यह क्या कह रही हो? मेरे इतना कहते ही गुड्डी ने अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देखा और जोर जोर से हंसने लगी। फिर वो भयानक तरीके से उलटी होकर हाथ और पैरों पर चलते हुए मम्मी के पास आई और उनके कान में आकर फुसफुसाते हुए कहने लगी। तू चल मेरे साथ। नहीं तो मैं गुड्डी को ले जाऊंगी।
Akbar and birble
1)
https://www.youtube.com/watch?v=wJyJzNRcr9I
चाँद का टुकड़ा। एक दिन दरबार में बादशाह का गुस्सा पूरे उफान पर था। बीरबल दफा हो जाओ हमारी नजरों के सामने से। दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि इस बार बीरबल को किस गलती की सजा मिल रही है। अब मैं निर्दोष हूं या गुनहगार यह जानने के लिए हम इस कहानी को शुरुआत से देखते हैं। कुछ दिन पहले ईरान से एक शख्स दरबार आया बच्चा सलामत रहे। मैं हूं आपके प्यारे दोस्त और ईरान के सिरताज सुल्तान अनछुई रानी का खास मंत्री। अब्बू अब भी हो। बताओ अब्बू अब यहां कैसे आना हुआ? दरअसल हुआ यूं कि हमारी सल्तनत में कोई ऐसा शख्स नहीं जो इन मसलों का हल ढूंढ सके। मेरी सल्तनत में तो नहीं पर आपके दोस्त बादशाह अकबर के यहां बीरबल नाम का एक होशियार सलाहकार है जो किसी भी मसले को चुटकियों में सुलझा सकता है। बीरबल के किस्से तो हमने भी सुने हैं। तो जाओ और उन्हें यह दावत पर बुलाओ। तो बस बादशाह अकबर अब कुछ दिनों के लिए बीरबल को ईरान भेज दीजिए। यह सुन तो बीरबल ने विनम्रता से अपने हाथ जोड़े और बादशाह को बड़ा गर्व हुआ कि उनके सलाहकार के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर है। क्यों नहीं इसी बहाने बीरबल कुछ दिनों की छुट्टी मना लेगा। छुट्टी का नाम सुन तो शातिर के तो जैसे कान खड़े हो गए। बादशाह महान, बादशाह महान। अगर आपकी इजाजत हो तो क्यों न मैं भी बीरबल के साथ ईरान चले जाऊं। इसी बहाने वहां के खजूरों का सौदा कराऊंगा। खजूर तो बस एक बहाना है। क्यों है न? शातिर उद्दीन नहीं बादशाह महान। पिछले बार के खजूर खराब निकले तो इस बार मैं खुद उन्हें किसी हीरो की तरह तराश लूंगा ताकि मेरे महान बादशाह को सबसे बढ़िया खजूर मिले। ठीक है खजूर। यह सुन सभी हंस पड़े और बादशाह ने दोनों को जाने की इजाजत दे दी। फिर क्या? ईरान में बीरबल का ऐसा स्वागत हुआ जैसे मानो बीरबल उनका कोई नायक हो। राजा बीरबल। जिंदाबाद जिंदाबाद। राजा बीरबल जिंदाबाद जिंदाबाद। यह देख शातिर मंत्री को काफी जलन हुई और वह मन ही मन बोले।अब भले ही बीरबल को इज्ज़त मिले पर मौका मिलते ही मैं इसकी ऐसी बेइज्जती करूंगा कि इसे ईरान तो क्या हिंदुस्तान से भी बेदखल कर दिया जाएगा। जैसे ही ईरान के राजा ने बीरबल को अपने दरबार में देखा तो वो बोले बीरबल! स्वागत है आपका हमारी सल्तनत में। शुक्रिया महाराज। बताइए क्या समस्या है आपके राज्य में? वो जो अब तुम आ गए हो। तो मसले तो हल हो जाएंगे। पर पहले हमें मेहमान नवाजी का मौका दीजिए। सेवक को, बीरबल को शाही मेहमानों के कमरे में रखा जाए और और मैं इन्हें शाही तबेले में रख दो। क्या? उस रात बीरबल पूरे शानो शौकत के साथ मखमली बिस्तर पर सो गए। पर शातिर मंत्री तबेले में गोबर और मच्छरों के बीच तड़पते रहे। इस बेइज्जती का बदला तो मैं लेकर रहूंगा बीरबल। आओ मच्छर भी ना। फिर क्या? अगले कुछ दिन बीरबल सुल्तान ईरानी के साथ राज्यों की समस्या सुलझाने में जुट गए। ऐसे करते करते पूरा एक हफ्ता बीत गया और सुल्तान ईरानी के सभी समस्याओं का निवारण उन्हें मिल गया। उस शाम जब वे तीनों शाही बगीचे में सैर कर रहे थे, तब ईरानी ने अचानक पूछा। वाह बीरबल! हमने जितना सोचा था, तुम तो उससे कई गुना होशियार निकले। शुक्रिया महाराज। इस तारीफ और मेहमाननवाजी दोनों के लिए। चापलूस कहीं का। उल्लू बीबी तो क्या हमारी मेहमान नवाजी बादशाह अकबर से भी अच्छी है? ये सुन तो बीरबल उलझन में पड़ गए। वे जानते थे दोनों में से किसी को भी कम बताना उचित नहीं होगा। बीरबल तो गए। वो दरअसल वो आप अपनी जगह अच्छे हैं और बादशाह अपनी जगह। आप दोनों की तुलना मानो जैसे पानी और हवा हो। तुम्हारी यही बात हमें पसंद है बीरबल, तुम सुर ताल के हिसाब से अपना जवाब देते हो, पर जाने से पहले तुम्हें एक सवाल का जवाब तो जरूर देना होगा। हुकुम कीजिए महाराज! बीवी वैसे तो तुम कई सारे राज्यों में गए होंगे और उनके इंसाफ देने के तौर तरीके देखे होंगे, लेकिन क्या तुमने कोई ऐसा राजा देखा है जो इंसाफ देने में और जनता की तरक्की करने में हमसे बेहतर हो? यह सुन तो बीरबल बेहद चिंतित हो गए। वह जानते थे कि एक भी शब्द अगर इधर से उधर हुआ तो वो न यहां के रहेंगे न वहां के। और तो और शातिर मंत्री भी वही है जो अकबर को चुगली करने में जरा भी नहीं सोचेंगे। अब होगी बीरबल की छुट्टी। अब मुझे कुछ ऐसा जवाब देना होगा जिससे कोई नाराज न हो। पर क्या उत्तर दूं? और उसी वक्त बीरबल की नजर आसमान में निकले पूरे चांद पर पड़ी, जिसे देख उन्हें एक सुझाव आया। महाराज, आप और आपका इंसाफ पूर्णिमा के चंद्रमा जैसा है, जो अपनी रोशनी से अंधेरे में भटकते हुए लोगों को राह दिखाता है। यह सुन तो सुल्तान आठों ईरानी मानो खुशी से फूले न समाए। मगर फिर वह बोले। लेकिन बीरबल, अगर मैं पूर्णिमा के चांद की तरह हूं तो बादशाह अकबर क्यों है? यह सुन तो बीरबल के पसीने छूटने लगे और शातिर मंत्री तो मजे लेने लगे। यहां बीरबल कुछ गलत बोला तो वहां उसकी छुट्टी। है। वो दरअसल आपकी तुलना में हमारे महाराज तो महज आधे चांद की तरह है। ये सुन सुल्तान ईरानी तो बहुत खुश हुए लेकिन पास ही जासूस की तरह दूर खड़े शातिर मंत्री मन ही मन बोले अच्छा। ईरान के सुल्तान। पूर्णिमा का खूबसूरत चांद और हमारे बादशाह महान। सिर्फ आधा चांद। अब देखना बीरबल, मैं तुम्हें कैसे सबक सिखाता हूं। फिर क्या? कुछ दिनों बाद आगरा पहुंचते ही शातिर मंत्री ने सारी बात बादशाह को बता दी। मैं तो शर्म से पानी पानी हो गया था। हमारे महान बादशाह की इतनी बेइज्जती इतनी तो आज तक किसी ने नहीं की। आप और आधा चांद। छी छी छी छी छी छी। ये सुन तो बीरबल के पसीने छूट गए और बादशाह अकबर का पारा उफान पर चढ़ गया। बीरबल। दफा हो जाओ। हमारी नजरों के सामने से। यह सुन शातिर मंत्री को अपनी जीत का एहसास हो गया। इस बार तो बीरबल ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली। अब इससे बचने का कोई रास्ता नहीं। पर वो जानते नहीं थे कि बीरबल कोई भी बात बिना सोचे समझे नहीं कहते। इसलिए बीरबल ने शांति से बादशाह को बताया महाराज! जिसे आप बेइज्जती समझ रहे हो दरअसल वो आपकी तारीफ है। वो कैसे आधे चांद की चमक पूर्णिमा के चांद के सामने कैसे टिक पाएगी भला? महाराज! बात चमक की नहीं। वो तो कभी भी फीकी पड़ सकती है। बात है आपके अस्तित्व की और भविष्य की। बातें मत घुमाओ बीरबल। मुद्दे पर आओ। तुमने बादशाह को आधा चांद क्यों कहा, वो बताओ। बस देखिए, मैंने भले ही सुल्तान को पूर्णिमा का चांद कहा। परंतु पूर्णिमा का चांद धीरे धीरे ढल जाता है और आती है अमावस्या, जहां चांद का कोई अता पता नहीं होता। परंतु उसके विपरीत वक्त के साथ आधे चांद का आकार और चमक बढ़ती ही जाती है। तो कहने का तात्पर्य यह है सुल्तान ईरानी का राज तो एक दिन खत्म हो जाएगा परंतु आपका प्रभाव बढ़ते ही जाएगा और एक दिन पूरी दुनिया को अपनी रोशनी से जगमगा देगा। यह सुन तो बादशाह बेहद खुश हो गए। वाह बीरबल! इसी वजह से तुम्हारा नाम पूरी दुनिया में मशहूर है। पर। यह देख बादशाह और सारे दरबारी हँस पड़े और हमने यह सीखा कि किसी भी अधूरी बात को सुनकर हमें निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए।
2) https://www.youtube.com/watch?v=uUl-usSrsYI
दादी की आखिरी इच्छा। एक दिन दरबार में उदासी छाई हुई थी। कारण था बादशाह की पर पर दादी का अंतिम समय निकट आ जाना। बेटा की डरने की कोई बात नहीं है। मैंने अपनी जिंदगी मस्त मजे में काटी है। अरे वाह! अरे वाह! अरे वाह! यह। बस एक बात न करने का अफ़सोस है और वो ही मेरी आखिरी इच्छा है। आप बस हुकुम कीजिये। दादी अम्मी आपकी आखिरी इच्छा के लिए दुनिया हिला दूंगा मैं। दरअसल, मैंने जिंदगी में कभी तोतापुरी आम नहीं खाया। जब जब मैं आम खाने गई, तब तब। तो बस एक बार तोतापुरी आम खाकर। मैं नरक। अरे, मेरा मतलब स्वर्ग पधार कर सकती हूँ। यह सुन बीरबल समेत वहां खड़े सभी लोग चौंक गए और शातिर मंत्री बोले। पर यह तो नामुमकिन है। अभी तो आम का नहीं, चीकू का मौसम चल रहा है। तो चीकू चलेगा। हम कुछ नहीं जानते। किसी भी तरह आम का इंतजाम किया जाए वरना तुम सब की छुट्टी। यह सुन सारे मंत्रिमंडल तुरंत दौड़ पड़े और बाजार पहुँच कर सभी फल वालों से आम के बारे में पूछने लगे। परन्तु निराशा के अलावा कुछ हाथ न लगा। अरे दादी को भी अभी आम खाना था। कुछ महीने और रुक जाते पर। बीरबल ने इसका उपाय सोच लिया था और वो दौड़ते हुए बोले। उम्मीद करता हूं कि आचार वाले के पास आम मिल जाएगा। वहां महल में दादी की हालत और गंभीर होती जा रही थी। आम। आम। हौसला रखिए दादी अम्मी। बाकियों का तो पता नहीं, पर मुझे भरोसा है कि बीरबल आम लेकर जरूर आएगा। परंतु जैसे ही बीरबल आम लेकर पहुंचे वैसे ही दादी ने अपनी आंखें हमेशा हमेशा के लिए बंद कर ली। उस दुखद घटना को देख अकबर मानो सदमे में चले गए और बीरबल भी सर झुकाए वहां खड़े रहे। यह सबके लिए बेहद कठिन समय था। और क्यों न हो, बादशाह अकबर जिनके पास सब कुछ है, उनकी प्यारी दादी को एक आम भी न दे सके। उस घटना को कुछ हफ्ते बीत गए पर बादशाह का मानो राजकीय कर्तव्यों से ध्यान ही भटक चुका था। वह बस अपने कमरे की खिड़की के बाहर। बहती नदी के पानी को टक लगाए देखते रहते। यह देख सारे मंत्री चिंतित हो गए कि अब उनके राज्य का क्या होगा और तभी अचानक शातिर मंत्री खुशी से चिल्ला उठे, मिल गया। मिल गया। बादशाह को उदासी से बाहर लाने का उपाय। क्या बाबा आत्मशांति वाले? अब आपकी दादी की आत्मा को शांति दिलाने का केवल एक ही मार्ग है। जल्दी बताइए, क्योंकि आपकी दादी बिना आम खाए चली गई तो आपको सोने से बने आमों को राज्य के सारे विद्वान और बाबाओं को बांटने होंगे। क्यों सोने के आम बांटने से हमारी दादी की आखिरी इच्छा पूरी हो जाएगी? शत प्रतिशत यह है बाबा की गारंटी।फिर क्या? बादशाह के आदेश अनुसार महल के तहखाने से सोना ले उसे पिघलाकर उससे आम बनाए जा रहे थे। जैसे ही यह खबर राज्य में फैली, सोना आम लेने के लिए विद्वानों और बाबाओं की लंबी कतार लगने लगी। और तो और राज्य के बाहर से भी लोग आकर इस परिस्थिति का फायदा उठाने लगे। परंतु बादशाह भावनाओं में इतना बह गए थे कि उन्होंने इस बात का भी गौर न किया कि इसके कारण महल का खजाना कम होते जा रहा था। यह देख सारे मंत्रिमंडल चिंतित हो गए। इस तरह राज्य कंगाल हो जाएगा। हमें जल्द ही कुछ करना होगा। पर क्या करें, बादशाह का पश्चाताप तो खत्म ही नहीं हो रहा। बीरबल ने इस पर खूब विचार किया, परंतु उन्हें भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि समस्या को कैसे सुलझाएं। और तभी उनकी नजर महल के भीतर आते शातिर मंत्री पर पड़ी जो पांव फिसल कर गिर पड़े। अरे रे रे रे। रे मेरा सिर। ये देख बीरबल के दिमाग की बत्ती जली और वो बोले। मिल गया उपाय। बस मुझे एक डंडा लाकर दो। फिर क्या? डंडा ले बीरबल। सोने की आम लेने आई भीड़ के पास गए और बोले सुनो। अब जो जो इनाम लेने आगे आएगा, उसे सिर पर एक जोर का डंडा भी पड़ेगा। जो इस बात से मंजूर है, वही आगे आए। यह सुन वहां खड़े सभी लोग चौंक गए और शातिर मंत्री ने तुरंत यह बात जाकर बादशाह को बताई। बादशाह महान। जल्दी चलिए। लगता है बीरबल अपना मानसिक संतुलन खो चुका है। जैसे ही बादशाह वहां पहुंचे, उन्होंने देखा कि बीरबल डंडा लिए लोगों के पीछे भाग रहे थे। बीरबल यह क्या कर रहे हो? तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है। जी महाराज! मेरा तो है पर मेरी दादी का नहीं। क्या मतलब? वो दरअसल गांव में मेरी प्यारी दादी की याददाश्त। सिर में चोट लगने के कारण खो गई है। यह तो बड़े दुख की बात है। पर इसका बाबाओं को डंडा मारने से क्या लेना देना? वो दरअसल वैद जी ने कहा है दादी के सिर के जिस हिस्से में चोट लगी है, अगर ठीक उसी हिस्से में दोबारा मार पड़े तो शायद उनकी याददाश्त वापस आ सकती है। यह सुन तो बादशाह चौंक गए। पर याददाश्त तो तुम्हारी दादी की गई है। फिर इन बाबाओं के टकले पर डंडा मारने से उन्हें कैसे फायदा होगा? कोई तर्क है इस बात का? ओह! ऐसा है क्या? मुझे लगा जिस प्रकार इन्हें सोने के आम देने से आपकी दादी की तोतापुरी आम खाने की इच्छा पूरी हो सकती है, उसी प्रकार शायद मेरी दादी का भी इलाज मुमकिन हो। यह सुन बादशाह तुरंत समझ गए कि बीरबल का इशारा किस तरफ है और उन्हें अपनी गलती का एहसास होने लगा। तुम सही कह रहे हो बीरबल। जिस तरह हम किसी और की बीमारी अपने शरीर द्वारा ठीक नहीं कर सकते। उसी तरह किसी और की इच्छा भी पूरी करना नामुमकिन है। हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। कोई बात नहीं महाराज, कभी कभी भावनाएं हमारी सोच पर हावी हो जाती है। तो ऐसे ही भूल किसी से भी हो सकती है। बस कुछ व्यक्ति उसे सुधार पाते हैं और कुछ नहीं। पर अब हम इस गलती को कैसे सुधारें? सबसे पहले तो सभी बाबाओं को यह आदेश दीजिए कि सोने के आम लौटा दे, जिससे हमारे राज्य का खजाना फिर से भरा जा सके। एक राजा का कर्तव्य राज्य के प्रति सबसे पहले होता है, पर हमारी दादी की आखिरी इच्छा। कहा जाता है हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता। किसी को जमीन नहीं मिलती तो किसी को आसमान नहीं मिलता। बहुत खूब। इसका मतलब यही है कि हर इंसान को जिंदगी में सब कुछ नहीं मिलता और अगर मिल भी जाए तो उसकी जगह कोई और इच्छा आ जाती है। यह बात तो हम भी समझते हैं, लेकिन हमारी पर परदादी की तो बहुत मामूली इच्छा थी। जी बिल्कुल। उसके लिए एक बेहतरीन उपाय है। ऐसी मान्यता है कि पेड़ों में आत्माएं बसती है। तो क्यों ना हम आम के पेड़ लगाएं। उससे वातावरण भी ठीक होगा। अगर दादी की इच्छा हुई तो वह आम आकर खा भी लेगी। यह सुन तो बादशाह की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने बीरबल को तोहफे में तीन सोने की आम देने का आदेश दिया और हमने यह सीखा कि भावनाएं अपनी जगह ठीक है पर उसे अपनी सोच पर हावी नहीं होने देना चाहिए वरना भारी नुकसान हो सकता है।
3) https://www.youtube.com/watch?v=nYrg_gKTdBs
शातिर की चोरी। एक शाम शातिर मंत्री अपने घर में आराम फरमा रहे थे और तब अचानक उनकी बेगम नाजिया वहां आई और उनसे पूछा अजी सुनते हो? याद है हम पिछले हफ्ते शाही दरबार की दावत में गए थे और वहां हमने शाही भिंडी मुसल्लम खाया था। कैसे भूल सकता हूं तुमने भूलने का मौका ही कहां दिया? जी बिल्कुल। वो था ही इतना स्वादिष्ट। तो क्यों न तुम शाही रसोई से वो शाही भिंडी ले लो। मेरा वो खाने का बहुत मन हो रहा है। हां, बात तो सही है। महल में आने वाली भिंडी का स्वाद हमारे बाजार में मिलने वाली भिंडी से बहुत स्वादिष्ट था। मैं अभी जाकर ले कर आता हूं। फिर क्या? बिना वक्त गंवाए शातिर मंत्री तुरंत वहां से दौड़े और पहुंच गए शाही रसोई में जहां इत्तेफाक से मुख्य बावर्ची भिंडी ही बनाने की तैयारी कर रहा था। कैसे हो बाबा बावर्ची, खाना पीना हुआ या नहीं? अरे मियां काम क्या है? वो बताओ। खामखां वक्त जाया मत करो। आज बादशाह ने फिर से भिंडी मुसल्लम खाने की इच्छा जताई है। ओह हो हो हो हो तो मतलब रसोई में भिंडी बहुत सारी होगी आज। क्या तुम मुझे थोड़ी सी दे सकते हो? अरे हरगिज नहीं दे सकता। बादशाह की अनुमति के बिना इस रसोई घर से एक कढ़ी पत्ता तक नहीं हिलता। तो भिंडी क्या चीज है भाई? और बादशाह किसी जरूरी काम से बीरबल के साथ पड़ोसी राज्य गए हैं। सीधे रात के खाने के वक्त ही लौटेंगे। अरे मगर सिर्फ थोड़ी सी भिंडी की तो बात है। अरे अब तुम यहां से जाते हो या सिपाहियों को कहकर धक्के मार कर निकलवा लो। याद रहे तुम होगे मुख्यमंत्री। पर इस रसोई का मुख्य बावर्ची मैं हूं। हां हां, ठीक है। ठीक है, ज्यादा उछलो मत। इस बावर्ची की तो मैं चटनी बना कर ही रहूंगा। क्या तुम्हें भिंडी नहीं मिली? मैंने कोशिश तो की। पर मैं कुछ नहीं जानती। मुझे शाही भिंडी खानी है बस वरना आज रात भूखे सोने की तैयारी कर लो। अरे बाप रे! अब क्या करूं? शातिर मंत्री ने इस पर कुछ सोच विचार किया और तभी उनका बेटा वहां से गुजरते हुए बोला अब्बू मैं तट पर सोने जा रहा हूं। खाना बनते ही उठा देना। यह कहकर वह सीढ़ियां चढ़ वहां से निकल गया और शातिर मंत्री के शातिर दिमाग में आई एक शातिर योजना। वो कहते हैं ना सीधी उंगली से घी ना निकले तो उंगली टेढ़ी कर लेनी चाहिए। अब मैं भिंडी तो लाऊंगा ही पर साथ ही साथ उस बाबा बावर्ची की भी छुट्टी करवाऊंगा। फिर क्या शातिर मंत्री अपना भेस बदलकर दरबार पहुंचे और एक सिपाही से कहा। अरे सुनो। मैं पड़ोसी राज्य से आया हूं। आपके बादशाह वही हैं और उन्होंने एक संदेशा भेजा है कि वह आज भिंडी मुसल्लम नहीं खाना चाहते, बल्कि वड़ा पाव खाएंगे। तो यह बात मुख्य बावर्ची को बताना मत भूलना। उस सिपाही ने ठीक वही किया जिससे सुन बाबा बावर्ची तो हड़बड़ा गया। अरे ये क्या? रसोई में तो पाव बनाने का सामान खत्म हो गया है। हमें जल्दी बाजार से सब लाना होगा। चलो। जैसे ही वो दोनों वहां से निकले, खिडकी के रास्ते से शातिर मंत्री कूदे और तुरंत गए भिंडी के पास। शातिर उस दिन तुम्हारी अक्लमंदी का कोई जवाब नहीं। कुछ देर बाद शातिर मंत्री अपने घर पहुंचे। यह लो जितनी उम्मीद की थी उससे कहीं ज्यादा भिंडी है। तुम भी क्या याद रखोगे? हां हां ठीक। है। अब जाकर छोटू को जगाओ। उसके खाए बिना मेरे मुंह से एक निवाला नहीं जाएगा और तुम्हारे गले से तो मैं पानी की बूंद भी जाने नहीं दूंगी। वो तो मैं भी जानता हूं और यह भी जानता हूं कि अगर किसी ने उससे पूछा कि खाने में क्या खाया था तो वह सच उगल देगा। इसलिए अब एक ही रास्ता बचा है। और फिर शातिर मंत्री दबे पांव उनके बेटे के पास पहुंचे और उसके ऊपर एक बाल्टी पानी डाल दिया, जिससे वह बच्चा अचानक डरकर उठ गया। क्या हुआ? क्या हुआ? अरे जल्दी चलो बेटा, बारिश हो रही है। तेज बारिश। यह सुन बच्चा वहां से भीतर भागा और शातिर मंत्री ने अपने आप से कहा। अब बस यही उम्मीद है कि तीर निशाने पर लग जाए। कुछ देर बाद बाबा बावर्ची ने बादशाह के सामने खाने का ढक्कन हटाया तो बादशाह दंग रह गए। यह क्या वड़ापाव। हमने तो तुमसे भिंडी मुसल्लम बनाने को कहा था। यह क्या बवाल बना दिए हो? पर। पर आप ही ने तो संदेसा भेजा था। जिल्ले इलाही क्यों बकवास कर रहे हो? हमें और भूख बर्दाश्त नहीं हो रही। जल्द से जल्द भिंडी बना लाओ वरना तुम्हारी नौकरी गई। यह सुन तो बावर्ची वहां से दौड़ा। पर जैसे ही वह रसोई घर पहुंचा तो देखा कि भिंडी वहां से गायब थी। वह समझ गया कि इसके पीछे किसका हाथ होगा। तुम तो गए काम से। क्या? तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं चोरी जैसी घटिया हरकत कर सकता हूं। बादशाह महान। यह बाबा मुझसे जलता है और कुछ नहीं। झूठ मत बोलो। तुम ही मुझसे भिंडी मांगने आए थे ना और उसके बाद ही भिंडी गायब कैसे हो गई? तुम जरूर उसे घर ले गए होंगे। इतना ही है तो मेरे घर वालों को बुलाकर पूछ क्यों नहीं लेते कि उन्होंने आज खाने में क्या खाया था? तुम्हारी पत्नी को तो तुमने झूठ का पाठ पढ़ा दिया होगा, पर एक बच्चा हमेशा सच बोलता है। इसलिए तुम्हारे बेटे को यहां पेश किया जाए। तो बताओ बेटे। मेले बाबू ने थाने में क्या खाया था? भिंडी खाई थी। यह तो उनके। मेरा मतलब। यह सुन तो सब चौंक गए और बाबा बोले। देखा मैंने कहा था ना। अब सब साफ हो चुका है। कुछ साफ नहीं हुआ। हो सकता है इसने भिंडी सपने में खाई हो। बादशाह मेरी आपसे दरख्वास्त है कि आप मेरे बेटे से उसके दिनचर्या के बारे में पूछे जरूर। तो बेटे बताओ आज तुमने क्या किया? मैंने मैं तुम्हे पाठशाला ले आया। फिर बहार ठेला। फिर घर आते छत पर सो गया। फिर अचानक बारिश होने लगी। देखा बादशाह अकबर। हम सब जानते हैं कि आज बारिश हुई ही नहीं। क्यों है ना? बात तो सही है। ये सुन दरबार में चहल पहल होने लगी और बाबर जी को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या बोले। तो बस जैसे मेरे बेटे ने सपने में बारिश देखी ठीक उसी प्रकार वो सपने में भिंडी भी खा गया होगा। आप इस बावर्ची की बात पर यकीन मत कीजिए। इसे कड़ी से कड़ी सजा दीजिए। ठीक कह रहे हो मंत्री जी। शाही रसोई में किसी भी प्रकार की लापरवाही जानलेवा हो सकती है। इसलिए बाबा बावर्ची को इसी वक्त बर्खास्त किया जाता है। यह सुन तो बावर्ची जैसे ठंडा ही पड़ गया और उसकी आँखें अश्रु से भर आई। और शातिर के मन में तो लड्डू फूटने लगे। चलो सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। उनकी यह हरकत बीरबल ने भांप ली। वो समझ गए कि इसमें जरूर मंत्री जी की कोई साजिश है और वो किसी बेगुनाह के साथ नाइंसाफी होने नहीं दे सकते थे। वो तुरंत उठे और बोले ठहरिए महाराज। जिसे इंसाफ देना चाहिए उसे दंड कैसे दे सकते हैं आप? क्या मतलब? वो दरअसल मैंने ही बावर्ची को भिंडी बनाने से मना किया था। ऐसा क्यों? ये सुन तो बावर्ची ने पहले अपना सिर खुजाया फिर बीरबल ने उन्हें निश्चिंत रहने का इशारा किया। शाम को बीरबल का संदेशा भी आया था। पर तुमने ऐसे क्यों किया? बीरबल? वो दरअसल मैं आपको बताना ही भूल गया था कि इस बार सात समुंदर पार से जो भिंडी आई है उसमें जहरीली फफूंद लग गई है। क्या? क्या? क्या? हां वो। मैंने इनसे कहा था कि उसे फेंक देना। क्या पता उसे खाकर किसी की तबियत कब बिगड़ जाए। और तो और बच्चों के लिए वो भिंडी घातक साबित हो सकती है। अरे मैं अपने बच्चे को कुछ नहीं होने दूंगा। जल्दी से कोई वैद्य को बुलाइए। जल्दी से जल्दी से। इससे पहले वो भिंडी अपना असर कर जाए। जल्दी कोई जाओ। अरे नहीं। इसका मतलब तुमने वो भिंडी खाई। हां हां, मैंने ही वो रसोई घर से चुराई थी। अब मुंह क्या देख रहे हो? वेद जी को बुलाओ। जाओ चिंता मत करो। तुम सब ठीक हो। हां, पर आपकी नीयत ठीक नहीं मंत्री जी। क्या मतलब?
7)
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अकबर का खौफ। एक दिन बादशाह अकबर महल में खुशी से झूम रहे थे। झूम बराबर झूम। यह अद्भुत नजारा देख बीरबल के मन में बड़ी जिज्ञासा हुई और उन्होंने इसकी वजह जाननी चाही। महाराज! क्या मैं आपकी खुशी की वजह जान सकता हूं? क्यों बताऊं बीरबल, आज तो ऐसा लग रहा है जैसे हमने दुनिया पर जीत हासिल कर ली हो। ओह, बहुत खूब। मगर हुआ क्या है महाराज? तो सुनो, आज जब हम दरबार से बाहर टहलने निकले तब। खुद बादशाह मेरी आंखों के सामने से तो भाग्य ही खुल गया। सी। संडे सगे नहीं तो आपसे बढ़िया। इंसान तो पूरी दुनिया में नहीं। ओह! ठोको ताली। ओह! शुक्रिया। ओह! ओह! ओह! ओह! ओह ओह! ओह ओह! सब्जी हम तुमको बहुत मानते है। तुम्हारे जैसा राजा पाकर हम तो बहुत खुश हो गए है। मुरब्बा तुम्हारा भी शुक्रिया। अकबर बादशाह की। जय। अकबर बादशाह की जय। देखो बीरबल, हमारी प्रजा हमें कितना चाहती है। वह हमारे गुणगान करते थकते नहीं। एक बादशाह को इससे ज्यादा और क्या चाहिए? उसी वक़्त वहां शातिर मंत्री भी आ गए और वो बोले जी। बिलकुल जिल्ले इलाही। मैं तो आपसे हमेशा कहता हूँ कि आप ज्ञानी है, अंतर्यामी है। बस यही बात अब हमारी जनता को भी समझ आ गई है। बादशाह महान। बीरबल ने इस पर विचार किया और उन्होंने मन ही मन सोचा। यह तो सही है कि बादशाह के कई लोग कायल है परन्तु यह बस आधी सच्चाई है। मुझे इन्हें सच्चाई से रूबरू करवाना ही होगा। वरना खुद के मोह में खोकर एक राजा अपनी जनता अनदेखा कर सकता है। क्या हुआ बीरबल? कहीं तुम भी हमारी महानता के विचार में तो नहीं खो गए? आपकी महानता पर तो किसी को कोई संदेह नहीं है। लेकिन किंतु परंतु क्यों? हमसे साफ साफ कहो। वो दरअसल यह बात तो सही है कि प्रजा आपसे प्रेम करती है, पर यह भी सच है कि वो प्रेम की भावना आपके डर के कारण उमड़ी है। यह सुन शातिर मंत्री तिलमिला उठे और बोले। देखा नहीं यह बीरबल को तो किसी की तारीफ हजम ही नहीं होती। बस लोग उसी के गुणगान गाते रहते हैं। जनता है यह आपसे। क्या मैं बादशाह अकबर से चलूं? हो ही नहीं सकता। मैं तो बस वो कह रहा हूं जो सच है। जनता को महाराज से प्रेम तो है पर उस प्रेम का अधिक हिस्सा डर से उत्पन्न होता है। बस बहुत हुआ। अब इससे ज्यादा तुमने अकबर महान की तौहीन की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। बादशाह, आप बस हमें हुकुम कीजिए। मैं इसी वक्त बीरबल को यहां से धक्के मारकर निकाल देता हूं। इसकी कोई जरूरत नहीं। हम जानते हैं कि बीरबल कोई भी बात बिना जाने समझे नहीं कहता तो इसके पीछे भी कोई वजह होगी। तो ठीक है बीरबल, हम तुम्हें दो दिन का वक्त देते हैं। अगर तुम यह साबित कर पाए कि हमारी जनता हमसे डरती है तो ठीक वरना सजा के लिए तैयार हो जाओ। सिर्फ सजा नहीं, इसे तो कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। यह सुन तो बीरबल चिंता में आ गए और उन्होंने खुद से कहा। मुझे भी उड़ता तीर लेने की आदत हो गई है। बीरबल अब चुप क्यों हो गए तुम? अच्छा होगा तुम अभी हार मान लो और बादशाह महान से दया की भीख मांग लो। बीरबल को तो समझ नहीं आ रहा था कि अब ये बात वो कैसे साबित करे। अब भला कोई बादशाह के सामने तो उसकी बुराई नहीं करेगा तो वो ऐसा क्या करे कि जिससे बादशाह के प्रति जनता का डर साबित हो जाए। और तभी शहजादे वहां से दौड़ते हुए गए और उनके पीछे पीछे दौड़ी। महारानी हाथ में दूध से भरा गिलास लिए अरे अरे रुक जाओ बेटा, जब देखो दूध से दूर भागते हो। यह नजारा देख बीरबल को एक विचार आया और वो बोले। ठीक है महाराज! कल तक दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। फिर क्या? अगले दिन बीरबल ने शाही दूध को जनता के बीच एक संदेश लेकर भेजा। सुनो, सुनो, सुनो। बादशाह अकबर आज किसी महत्वपूर्ण काम से राज्य से बाहर जा रहे हैं और उन्होंने यह कहा है कि उनकी गैर मौजूदगी में सारे रहिवासियों को महल के आंगन में बने बड़े से गड्ढे में एक बाल्टी दूध डालना होगा, जिसे बाद में नदी में बहा दिया जाएगा। यह सुन वहां खड़े लोग अपना सिर खुजाने लगे। भला बादशाह ने यह फरमाइश रखी क्यों? अरे, यह क्या मजाक है? पहले ही दूध इतना महंगा हो गया है। पर बादशाह के आदेश को नकारा भी तो नहीं जा सकता। हां, पर उस आदेश का कोई तर्क भी तो होना चाहिए। अगर उसे भूखे लोगों और पशुओं को देना होता तो भी समझ आता। पर यह तो उसे नदी में बहाना चाहते हैं। बात तो सही है। चलो इसका कोई उपाय ढूंढते हैं। कुछ देर बाद बादशाह ने चुपके से अपनी खिड़की के बाहर झांका तो वहां खड़ी लंबी कतार को देख वह बेहद खुश हो गए। देखो बीरबल, हमारी जनता हमें कितना चाहती है। हमारे एक आदेश से वह एक बाल्टी दूध बहाने आ गए। बीरबल मुस्कुराते हुए बोले। अब वह प्यार है या डर, वह तो वक्त ही बताएगा। फिर क्या? अगले दिन बीरबल ने दोबारा दूत को एक संदेश के साथ जनता के बीच भेजा। सुनो, सुनो! सुनो। आज फिर बादशाह ने एक बाल्टी दूध लाने का आदेश दिया है। पर इस बार वह दूध सभी को नए घड़े में डालना होगा। और तो और, बादशाह खुद वहां खड़े होकर इस कार्य को देखेंगे। यह सुन तो वहां खड़े लोगों के पसीने छूटने लगे। अरे! बादशाह वहां मौजूद होंगे। अब क्या करें? अब क्या कर सकते हैं? चुपचाप उनके आदेश को मानो। फिर क्या? कुछ देर बाद एक एक कर लोग आते और नये घड़े में एक बाल्टी दूध डाल कर बादशाह को नमन कर चले जाते। सूरज ढलते ढलते वो घड़ा दूध से भर गया और बादशाह की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। देखा बीरबल, लगातार दूसरे दिन भी जनता ने बिना किसी सवाल के हमारे बेतुके आदेश को मान लिया। अब तो मानते हो ना कि हमारी जनता हमसे बहुत प्यार करती है। इसमें तो कभी कोई शक था ही नहीं। बादशाह महान। यह तो बस इस बीरबल के मन में आपके प्रति जलन के कारण हमें यह साबित करना पड़ा। मैं तो कहता हूँ सजा के तौर पर इसे यह सारा दूध पीने का आदेश दे दिया जाए। रुको, ज़रा सब्र करो, उससे पहले ज़रा घड़े को देख लें। जैसे ही बीरबल ने ताली बजाई, कुछ सिपाहियों ने आकर पहले घड़े के ऊपर से ढक्कन को हटाया और जब सबने उसमें झांका तो वो लोग ये देखकर हैरान हो गए कि उसमें दूध से ज्यादा पानी भरा हुआ था। ये क्या? इतना पतला दूध? बिल्कुल। क्योंकि इस दूध में मिलावट है। ठीक वैसे ही जैसे जनता की भावनाओं में आपके प्रति। क्या मतलब? मतलब ये कि आज जब आप खुद उनके सामने मौजूद थे तो उन्होंने आपके डर के कारण बाल्टी भर दूध डाल दिया। लेकिन कल जब आप नहीं थे। अरे सुनो, मैंने घड़ा देखा है। उस पर एक बड़ा सा ढक्कन है जिसके छेद से हमें दूध डालना है। तो क्यों ना हम उसमें पानी डाल दें। वाह! बहुत सही योजना है। बाकियों के दूध के बीच में हमारा पानी मिल जाएगा। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। बस ठीक इस प्रकार कई लोगों ने बस दिखावे के लिए दूध की जगह पानी डाल दिया। ठीक उसी प्रकार जैसे कई लोग आपको दिखावे के लिए अपने डर की जगह सम्मान और प्यार जताते हैं। यह सुन बादशाह को बीरबल की बात समझ आ गई। शुक्रिया बीरबल, आज तो तुमने हमारी आँखे खोल दी। जी महाराज, मेरा इरादा बस इतना था कि आप किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उन पर विश्वास न करें। सही बात है। अब मैं चलता हूं। यह देख सब हंस पड़े और हमने यह सीखा कि झूठा प्यार हमारा दर्द का कारण बन सकता है। इसलिए ऐसे लोगों से सतर्क रहे, सावधान रहे। और देखते रहे। अकबर और बीरबल केवल रात्रि किस पर?
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शाही घोड़ा। एक दिन नेपाल के राजा सूरमा नेपाली ने अपने मुख्य मंत्री को किसान के कपडे लाने को कहा जिसे सुन वो चौंक गया। सब्जी तुम किसान के कपड़ों का क्या करोगे? तुमको तो हल चलाना भी नहीं आता। वो पहन के अकबर की राजधानी को। हम सुन सुन के मंत्री बीरबल बहुत होशियार है। तो मैं उसका परीक्षा लेकर हमारा सबसे चहेता शाही घोड़ा टट्टू। उसको सवारी के लिए तैयार करो। कुछ दिनों बाद राजा सूरमा नेपाली किसान के भेस में अपने शाही घोड़े पर दिल्ली की सीमा पर पहुंच गए। वहां की व्यस्त जनता, शोर शराबे से भरे बाज़ार, खान पान का सम्मान देख वो काफी खुश हुए। तभी उनके शाही घोड़े टट्टू ने उन्हें भूख के कारण आवाज़ लगाई। टट्टू तू भूख तो हमको भी लगी है। राजा ने यहां वहां देखा तो उन्हें एक तबेला नज़र आया और वो उस ओर चल दिए। वो जैसे ही वहां पहुंचे तो देखा कि एक क्रूर सेठ किसी विकलांग व्यक्ति को धक्के मार कर तबेले से बाहर निकाल रहा है। चल निकल यहां से। जेब में एक फूटी कौड़ी नहीं और घोड़ी चढ़ने है। वो विकलांग व्यक्ति जिसका नाम चंदू चमन था, अपना सिर झुकाए वहां से निकलने लगा। तभी राजा ने उसे रुकवा कर पूछा। कि क्यों भाई साहब क्या हुआ उसे तुमको धक्का क्यों मारते? जैसे ही चंदू ने राजा के घोड़े को देखा, उसकी तो आंखें ही चमक गई। अरे वाह! आपका घोड़ा तो काफी सुंदर है। वो तो है पर तुम्हारा और उस सेठ का क्या हाल है? अरे अब क्या बताऊं सेठ मुझे आगरा जाना था। पर जैसे कि आप देख सकते हो मैं एक पांव से अपाहिज हो तो इतनी दूर सफर करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है। राजा को उस व्यक्ति की हालत देख उस पर दया आने लगी। हम समझ सकते है और उसके लिए सेठ जी से मैंने दरख्वास्त की कि मुझे कुछ घंटों के लिए घोड़ा उधार दे दो। परन्तु उन्होंने मेरी एक ना मानी और मुझे धक्के मार कर निकाल दिया। उस लाचार व्यक्ति को यूँ रोता देख राजा को बहुत बुरा लगा और उन्होंने उसकी मदद करने का फैसला किया। अच्छा अच्छा रो मत, मैं आगरा ही जा रहा है तो तुम्हें मेरे घोड़े पर छोड़ देता हूँ। आओ बैठ जाओ फिर राजा। सूरमा ने घोड़े से उतर कर चंदू को घोड़े की पीठ पर चढ़ाया और क्योंकि टट्टू भी थक चुका था और दो लोगों का बोझ उठाना उसके लिए मुश्किल होता। इसलिए राजा ने स्वयं पैदल ही सफर करने का फैसला किया। रास्ते में दोनों ने एक दूसरे को अपने अपने जीवन की कहानियां और अनुभव बताए, परंतु राजा ने अपनी असलियत अभी भी उससे छुपाकर रखी। कुछ घंटों बाद जब वे आगरा पहुंचे तो राजा सूरमा बोले। सिंधु, हम आगरा पहुंच गए। आओ, मैं तुम्हें घोड़े से उतरने में मदद कर देता हूं। और तभी चंदू ने तो अपने तेवर ही बदल दिए। अरे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि तुम मुझे मेरे ही घोड़े से उतरने के लिए कहो। यह सुन तो राजा सूरमा बिल्कुल हक्के बक्के रह गए। क्या? यह क्या कह रहे तुम? चंदू मौका देख चंदू ने और चिल्लाते हुए कहा। अरे मैं तो तुम्हें बस आगरा तक रास्ता बता रहा था। तुम्हारी मदद के बदले तुम मुझ से धोखाधड़ी करोगे? शर्म आनी चाहिए तुम्हें एक विकलांग व्यक्ति की सवारी उससे छीनते हुए। ये क्या बकवास है? मेरा घोड़ा तुम्हारा कब से बन गया? तुम्हारी याददाश्त कम है क्या? जब तुम मुझे दिल्ली शहर के बाहर मदद मांगते दिखे थे, तभी से यह घोड़ा मेरा ही था। नहीं, ये घोड़ा मेरा ही मेरा है, मेरा ही। ये शोर शराबा सुन दोनों के आस पास भीड़ इकट्ठा होने लगी। घुड़सवार की हालत देख लोगों को भी उस पर दया आई और उन्होंने उसी का साथ दिया। अरे रे, क्या जमाना आ गया है। लोग अब लाचारों को भी लूटने लगे हैं। देखो भाई! मैं तो कहता हूं मारो, इसे मारो, मारो, मारो। भीड़ को अपने खिलाफ देख तो राजा को भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे और तभी वहां दो सिपाही आ गए। तुम दोनों का फैसला अब दरबार में होगा। चलो दरबार पहुँचकर उन दोनों ने अपने अपने पक्ष। बादशाह को सुनाए। परंतु सूरमा नेपाली ने अभी भी अपनी हकीकत छुपाई रखी। जिसके कारण वहाँ बैठे बीरबल को शक आने लगा कि यह व्यक्ति कुछ न कुछ झूठ जरूर बोल रहा है। परंतु चंदू के भाव भी कुछ ठीक नहीं थे जिसके कारण सच और झूठ बताना मुश्किल हो रहा था। फिर क्या बीरबल खड़े हुए और उन्होंने घोड़े को अच्छे से परखा और उन दोनों से कहा। एक काम करो आज के लिए इस घोड़े को तुम यहाँ दरबार में ही छोड़ जाओ और कल सुबह। मैं खुलासा करूँगा कि तुम दोनों में से सच्चा मालिक कौन है। यह सुन वे दोनों वहाँ से चले गए और बीरबल ने सोचा। ये दोनों व्यक्ति तो अपने आप को साधारण बता रहे हैं पर यह घोड़ा यह तो शाही लगता है। कहीं ये दोनों ही झूठ तो नहीं बोल रहे। पता लगाना होगा। उस शाम जब बीरबल शाही बगीचे में टहल रहे थे तब उनके पास शाल ओढ़ा हुआ एक जासूस आया। उसने बताई बातें सुन बीरबल चौक गए। तो मेरा शक सही निकला। इतना बड़ा झूठ। अगली सुबह बीरबल ने चंदू और राजा सूरमा को शाही अस्तबल में बुलाया और कहा। आप दोनों मानते हैं कि यह घोड़ा आपका है। है न? हां, देखा। यह तय करना तो मुश्किल है परंतु क्योंकि आप दोनों यहां के मेहमान हो तो बादशाह अकबर के आदेश पर हम आप दोनों को एक एक घोड़ा दे देते हैं। कहो मंजूर है? मंजूर है। अरे, ऐसी कैसी? वह सिर्फ एक घोड़ा नहीं, मेरी शान है। शान। उसे सुन चंदू ने भी अपने सुर बदल दिए। हा हा हा। उस घोड़े को मैंने बचपन से पाला है। वह बस सवारी नहीं मेरा सहारा भी है। यह तो अब मुसीबत बढ़ गई। वो कैसे? वो दरअसल हमारे अस्तबल में ठीक वैसे ही बहुत से घोड़े हैं। अब तुम्हारे घोड़े को पहचानना मुश्किल होगा। तो एक काम करो। तुम दोनों एक एक कर अंदर जाकर खुद ही अपना घोड़ा ढूँढ़ लो। चन्दू पहले तुम जाओ और घोड़ा चुनने के बाद अस्तबल के पीछे इंतज़ार करना। फिर क्या? पूरे आत्मविश्वास के साथ चंदू भीतर तो गया पर अंदर जाते ही इतने सारे हूबहू घोड़े देख वो उलझन में पड़ गया। अरे रे! अब इनमें से वह कल वाला घोड़ा कैसे पहचानूँ इस पर माथापच्ची करके कोई फायदा नहीं। अब कोई भी घोड़ा ले लेता हूँ। जाने दो। फिर चंदू एक घोड़े की लगाम पकड़ उसे वहाँ से ले गया। कुछ देर बाद राजा सूरमा अंदर आए और इतने सारे घोड़े देख चिंतित हो गए। परंतु तभी उनकी नजर उनके चहीते सवारी पर पड़ी। ओ टट्टू टट्टू पिता ने मुझे। अस्तबल के बाहर। दोनों व्यक्ति अपने अपने घोड़ों के साथ खड़े थे। तब बीरबल वहां आए। क्यों? कल वाला घोड़ा मिला या नहीं? हां, मिला। चंदू मैं तुमसे नहीं राजा सूरमा नेपाली से पूछ रहा हूं, उन्हें उनका घोड़ा मिला या नहीं? यह सुन तो दोनों चौंक गए और राजा सूरमा बोले। बीरबल तो तुम्हें पता था मैं कौन है और यह मेरा ही घोड़ा है। वह दरअसल इस घोड़े को देख मैं समझ गया था कि यह कोई शाही घोड़ा है। पर क्योंकि राजा सूरमा ने अपनी असलियत छुपाई हुई थी तो कहना मुश्किल था कि यह शाही घोड़ा आप दोनों के पास कैसे आ गया था? फिर मैंने तुम दोनों के पीछे एक जासूस छोड़ा और। बीरबल जी वो चंदू तो चमन ही है। पर वो किसान कोई साधारण व्यक्ति नहीं बल्कि राजा शर्मा नेपाली है। राजा बीरबल जी, सच की तलाश में मैं इधर आया था। वो मैंने देख लिया। तुम वाकई बुद्धिमान नहीं। शुक्रिया राजा सुरमा। पर जब तुम्हें पता ही चल गया था तो तुमने हमें घोड़ा चुनने क्यों भेजा? दरअसल, मैं बस जासूस की बताई बातों पर यूं ही यकीन नहीं कर सकता था। तो पूरी तरह पक्का करने का यही तरीका था। और ऊपर से इस चंदू चमन को सबूत के साथ भी तो पकड़ना था। ये सुन तो चंदू डर से थरथराने लगा और बोला। मुझे माफ कर दो। बीरबल दरअसल मेरी विकलांगता की वजह से मुझे आने जाने में बहुत परेशानी होती है और नया घोड़ा लेने लायक मेरे पास पैसे भी नहीं है। इसलिए मजबूरी में मैंने ये गलत कदम उठाया। चंदू की इस बात पर बीरबल ने विचार किया और बोले।
https://www.youtube.com/watch?v=0anuz_rc2vI
https://www.youtube.com/watch?v=LcfO6SgZ14M
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अकबर और बीरबल की पहली भेंट एक खुशी भरी दोपहर में। सारा दरबार बीरबल के सुनाये हुए चुटकुले पर पेट पकड़ कर हँस रहा था और तब पड़ोसी राज्य से आए एक मेहमान रहमान नवाज हँसते हुए बोले, वाह! बादशाह अकबर आपका सलाहकार। बीरबल तो बेहद होनहार और चालाक है। अगर एक और ऐसा नमूना हो तो हमें भी दे दो। हा हा हा। सही कहा तुमने। पर ऐसा नमूना हर किसी के नसीब में नहीं होता। उसके लिए रास्ता भटकना पड़ता है। रास्ता भटकना पड़ता है। मैं कुछ समझा नहीं। चलो फिर आज हम दरबार को। बीरबल और हमारी पहली मुलाकात की कहानी बताते हैं। और फिर क्या था बादशाह ने दरबार को वो किस्सा बताना शुरू किया और बताया। एक दिन बादशाह अपने सिपाहियों के साथ जंगल के रास्ते आगरा जा रहे थे। तभी अचानक तेज तूफान आन पड़ा और उनके घोड़े डर के कारण यहां वहां दौड़ने लगे और जब तक तूफान थमा बादशाह अपना रास्ता भटक चुके थे। उस सुनसान रास्ते पर कोई नहीं था और आदमखोर जानवरों की आवाज आ रही थी। कुछ देर चलकर बादशाह को सामने तीन रास्ते दिखाई दिए। इसमें से एक रास्ता सही था और बाकी दो गलत। जिनके पार और घना जंगल था, जहां कोई एक बार जाता तो फिर लौटकर नहीं आता और तूफान में बादशाह अपना नक्शा भी खो बैठे थे, जिसके कारण वे बेहद दुविधा में आ गए थे और उसी वक्त बादशाह को झाड़ियों के पीछे से कुछ आवाज सुनाई दी जिससे बादशाह घबरा गए। यह कैसी आवाज है? कहीं कोई शेर या चीता तो नहीं? वह आवाज और पास आती गई और बादशाह के तो मानो पसीने छूट गए। तभी अचानक पेड़ के पीछे से निकला एक व्यक्ति किसी सभ्य इंसान को देख। बादशाह ने राहत की साँस ली और उस व्यक्ति को आवाज लगाते हुए कहा सुनो। हम रास्ता भटक गए हैं। तो क्या आप हमें बता सकते हैं इन तीनों में से कौन सा रास्ता आगरा जाता है? यह सुन वो व्यक्ति जोर से हंस पड़ा। हा हा हा हा। उसे यूँ हँसते हुए देख बादशाह काफी अचंभित हुए और पूछा। इसमें इतनी हंसने वाली क्या बात हो गई? हमने तो केवल यह पूछा कि आगरा कौन सा रास्ता जाता है? क्षमा चाहता हूँ महाराज! पर कभी कोई रास्ते कहीं नहीं जाते। रास्ते तो वही रहते हैं। उस पर चलकर हम जाते हैं। तो आपको यह प्रश्न पूछना चाहिए था कि कौन से रास्ते से हम आगरा जा सकते हैं? बीरबल की यह हाजिरजवाबी सुन बादशाह प्रसन्न हुए। हा हा हा। यह बात तो सही कही तुमने। काफी होशियार मालूम लगते हो। क्या नाम है तुम्हारा और क्या काम करते हो जी? इस नाचीज़ का नाम महेश दास है और मैं यहाँ के महाराज श्री रामचरण जी का मंत्री हूँ। तुमसे मिलकर बेहद खुशी हुई। मंत्री महेश दास क्या तुम बता सकते हो इन तीनों रास्तों में से कौन से रास्ते से हम आगरा जा सकते हैं? क्यों? सही पूछा ना? जी बिल्कुल। अगर ज़िन्दगी में कभी ऐसा मोड़ आ जाए तो हमें उस रास्ते को गौर से देखना चाहिए जहाँ लोगों के कदमों के निशान ज्यादा से ज्यादा दिखें। अधिक तौर पर वही रास्ता सुरक्षित होता है और इस मामले में मुझे दाहिना रास्ता सही लगता है। यह तर्क सुन बादशाह बीरबल से और ज़्यादा प्रभावित हुए और बोले। वाह महेश बाबू वाह! तुम्हारी अक्लमंदी तो लाजवाब है। हमारे दरबार में तुम जैसे रत्न की बेहद जरूरत है। तो क्या तुम हमारे यहाँ मंत्रीपद की नौकरी करोगे। इसे सुन बीरबल विचार करने लगे और बोले। बेहद शुक्रिया महाराज। पर इस वक्त मैं इस प्रस्ताव का स्वीकार नहीं कर सकता। बादशाह ने अपनी बेहद कीमती हीरे की अंगूठी निकाली और उसे बीरबल को देते हुए कहा। कोई बात नहीं, इस भेंट को हमारी तरफ से रख लो और जब भी तुम्हारा मन करे तो इस अंगूठी को निशानी के तौर पर ले। हमारे दरबार में बेझिझक आ जाना। अभी हम चलते हैं। हमें तुम्हारा इंतजार रहेगा। यह कहकर बादशाह वहां से चले गए और महेश दास भी अपने रास्ते निकल गए। और फिर समय बीतता गया। महेशदास के गांव के सारे मित्र गांव से बाहर घर बसाने लग गए। जिस वजह से उसका मन गांव में अब लगने से रहा। तभी उसके दिमाग की बत्ती चमकी और उसे याद आया बादशाह अकबर की अंगूठी और उनका प्रस्ताव। उसने सोचा कि अगर मैं गांव बदल कर कहीं और घर बसा लूं तो नए। मित्र और नया संसार दोनों भी पहले से शुरू कर सकता हूं। इस तरह से महेश दास डिब्बी में अंगूठी लिए बादशाह अकबर के दरबार की तरफ चल दिए। कुछ दिनों का सफर तय करने के बाद महेश दास दरबार के द्वार पर आ पहुंचे। तब वहां खड़े एक सिपाही ने उन्हें रोक लिया और पूछा रुको! कौन हो तुम? और दरबार में क्या काम है तुम्हारा? मैं महेश दास। दो साल पहले बादशाह ने मुझे यहां आने का न्योता दिया था। क्या बादशाह अकबर ने तुम्हें बुलाया था तुम्हें अपने आप को? कभी देखा है अपने जिंदगी में कभी आईना रखते हो क्या तुम? यह सुन महेश दास मुस्कुराए और उसने डिब्बा निकाल के डिब्बी के अंदर की अंगूठी सिपाही को दिखाते हुए कहा। यह अंगूठी हमें बादशाह अकबर ने सबूत के तौर पर दी थी। सिपाही ने बादशाह अकबर की कीमती अंगूठी देखी और सोचा। यह तो बादशाह अकबर की सबसे कीमती और नायाब अंगूठी है। शायद बादशाह अकबर इससे बहुत प्रसन्न हुए होंगे और आज यह उसी का इनाम लेने आया हो। इससे इनाम का आधे से भी ज्यादा हिस्सा मांगना ठीक ही रहेगा। आज तो बहुत बड़ा बकरा हाथ लगा है। ऐसे कैसे जाने दूं मैं इसे? ठीक है, ठीक है, मैं तुम्हें अंदर जाने की इजाजत दे दूंगा। पर मेरी एक शर्त है। आज तुम्हें बादशाह इनाम में जो भी देंगे, उसका आधा हिस्सा मुझे देना होगा। इस पर बीरबल मुस्कुराए और बोले। हां हां, आधा क्यों? मैं तो आज के इनाम का पूरा हिस्सा तुम्हें देने को तैयार हूं। सच मुच बस तुम मुझे एक बार बादशाह से मिलने जाने तो दो। यह सुन तो जैसे लालची सिपाही के मुंह से लार टपकने लगी और उसने तुरंत महेशदास को अंदर जाने की अनुमति दे दी। भीतर पहुंचते ही बादशाह को महेश दास को पहचानने में देर न लगी और महेश दास ने भी तुरंत दरबारियों को अपनी हाजिरजवाबी से मोह लिया, जिससे दरबार का माहौल खुशनुमा हो गया। हा हा हा हा हा। बस करो। महेश दास की हंसी से हम सबका पेट न फट जाए। कहो क्या इनाम चाहिए तुम्हें? इस पर बीरबल बिना सोच विचार किए तुरंत बोले। मुझे इनाम में 100 कोड़े दिए जाएँ। यह सुन सारे दरबारी चौंक गए। पर बादशाह अकबर जानते थे कि दास एक बहुत ही चतुर और समझदार इंसान है। वो यूँ ही 100 कोड़े की माँग नहीं करेगा। हम जानते हैं तुम्हारे दिमाग में कोई बात होगी। तुम बेझिझक होकर बताओ कि 100 कोड़ों की मांग क्यों की है तुमने? इस पर बीरबल ने बताया कि कैसे? दरबार के द्वार पर खड़े सिपाही ने उसे दरबार के अंदर आने की रिश्वत मांगी थी। जिस पर बीरबल ने उससे यह वादा किया कि आज मिला हुआ सारा इनाम वो उसे दे देगा। ये बात सुन अकबर ने उस सिपाही को तुरंत हाजिर होने को कहा और रिश्वत मांगने के जुर्म में उसे कालकोठरी में डाल दिया। फिर वो महेशदास से बोले। तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया महेश। हमारे कहे अनुसार आज से तुम हमारे रत्नों का एक हिस्सा हो और तुम्हारी बुद्धिमत्ता और हिम्मत को मद्देनजर रखते हुए तुम्हें बीरबल के नाम से संबोधित करते हैं। तो इस तरह महेश दास बन गए बीरबल। और हमारे दरबार के नौ रत्नों में से सबसे अनमोल रत्न। यह सुन दरबार तालियों से गूँज पड़ा और मेहमान रहमान वहां से अचानक उठ कर चल पड़े। रहमान कहाँ चल दिए रास्ता भटकने। यह सुन सभी हंस पड़े और हमने आज बीरबल और अकबर के इस इत्तेफाक की मुलाकात के बारे में सीखा।
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