Success Story
https://youtu.be/G4f5i4PXXj8?si=iT6bj0QJ4N8xq31e
https://youtu.be/vHHEqYY2wNw?si=w84FJZlvaPXH_mZc
1) https://youtu.be/RJpGiLzbGSw?si=6n0f6zjHojMND12i
2) https://youtu.be/eirp56YGWrs?si=ade958alBBMvx4re
आज से 15 साल पहले रो ग्रुप ने रोड पर हो जिनकी दो वर्ल्ड क्लास आर एनडी सेंटर्स हो और जो हार्ले डेविडसन जैसी प्रीमियम बाइक को प्रोड्यूस करती हो वो कंपनी इंडियन टू व्हीलर मार्केट में अपने गिरते मार्केट शेयर को रोकने में नाकाम क्यों हो रही है कभी रो ने की वजह से रो m के लिए नंबर वन पोजीशन को बरकरार रखना बेहद मुश्किल हो गया है लेकिन दोस्तों क्या आपने सोचा है कि रो साइकल्स जिसने कभी रो मो कप की नीव रखी थी आज किस मुकाम पर है या फिर रो इलेक्ट्रिक जो ला से भी पहले ईवी सेगमेंट में थी अब कैसी हालत में है और हां इनकी रो मोटर्स जो आज ऑटोमोटिव पार्ट्स की एक बड़ी कंपनी है वह क्या कर रही है कंफ्यूज मत होइए रो साइकिल्स रो इलेक्ट्रिक और रो मोटर्स इन तीनों कंपनीज का रो मो कप से कोई रिलेशन नहीं है आज की वीडियो में हम हम इन सारे कंफ्यूजन को दूर करते हुए हीरो की शुरुआत से लेकर होंडा से अलग होने की कहानी उनके फैमिली डिवीजन और करंट सिचुएशन को डिटेल में जानने वाले हैं हीरो की कहानी शुरू होती है आजादी से पहले साल 1944 में जब पंजाब के कमालिया गांव में चार भाई अपने पिता के साथ अनाज की ट्रेडिंग किया करते थे देश में माहौल ठीक नहीं था और लोग अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे उसी दौर में वह चारों भाई परिवार के साथ कमालिया छोड़कर अमृतसर आ गए और नए सिरे से जिंदगी शुरू कर ने की कोशिश करने लगे चारों भाइयों के पास कोई डिग्री तो नहीं थी लेकिन बिजनेस की अच्छी समझ थी उन्हें लगा कि आजादी के बाद साइकिल के बिजनेस में अच्छा ग्रोथ देखने को मिलेगा क्योंकि उस दौर में ज्यादातर साइकिल्स इंपोर्ट की जाती थी और महंगी होने की वजह से लोगों की पहुंच से दूर थी हालांकि कुछ इंडियन साइकिल कंपनीज भी मौजूद थी लेकिन उनकी क्वालिटी विदेशी ब्रांड्स के मुकाबले कहीं भी नहीं टिकती थी ऐसे में एक सस्ती और मजबूत साइकिल बनाने का बिजनेस उन्हें काफी फायदा पहुंचा सकता था लेकिन उस वक्त उनके पास ना तो इसकी टेक्नोलॉजी थी और ना ही उनकी हैसियत इतनी थी कि वे साइकिल बनाने की फैक्ट्री शुरू कर पाते फिर सबने मिलकर फैसला किया कि साइकिल ना सही वोह साइकिल के पार्ट्स बनाएंगे जिसके लिए बिजनेस लाने की जिम्मेदारी ब्रजमोहन लाल मुंजाल को दी गई जबकि बाकी तीन भाई दयानंद सत्यानंद और ओम प्रकाश मुंजाल पार्ट्स के प्रोडक्शन और डिलीवरी का काम संभाल लिए लोकल सप्लायर्स और कारीगरों की मदद से उन्होंने पार्ट्स की सप्लाई शुरू की और जब कुछ पैसे इकट्ठे हो गए तो घर के पीछे ही भट्ठी लगाकर कुछ कारीगरों को काम पर रख लिए उसी दौरान ओपी मुंजाल को पता चला कि उनके एक सप्लायर दोस्त जो उनको साइकिल की सीट्स प्रोवाइड करते थे हमेशा के लिए पाकिस्तान शिफ्ट होने वाले हैं तो उनसे मिलकर ओमपकाश जी ने पूछा कि क्या मैं आपके ब्रैंड का नाम इस्तेमाल कर सकता हूं वे तुरंत राजी हो गए और जानते हैं दोस्तों वह नाम क्या था वह नाम था हीरो और यहीं से शुरुआत हुई रो ग्रुप के विशाल बिजनेस एंपायर की साल आया 1954 एक डीलर के जरिए हीरो को एटलस साइकिल्स के फर्क बनाने का ऑर्डर मिला मुंजाल ब्रदर्स ने पेपर पर फर्क का डिजाइन बनाया और उसे तैयार करके ऑर्डर को डिलीवर कर दिया लेकिन फर्क के टू टने की इतनी कंप्लेंट्स आई कि डीलर ने सारा माल ही वापस कर दिया लेकिन मुंजाल ब्रदर्स हिम्मत नहीं आ रहे डिजाइन पर फिर से काम किए और उससे मजबूत फर्क तैयार करके डीलर को फिर से सप्लाई की इस बार कमाल हो गया फर्क की क्वालिटी इतनी अच्छी थी कि उन्हें साइकिल के हैंडल्स मडगार्ड और बाकी बचे पार्ट्स के भी ऑर्डर्स मिलने लगे मुंजाल ब्रदर्स वो मुकाम हासिल कर चुके थे जहां वे खुद साइकिल बनाने के बारे में सोच सकते थे फिर साल 1956 में लुधियाना की फैक्ट्री से रीजेंट कंपनी के रिम और डनलप के टायर ट्यूब के साथ पहली हीरो साइकिल मार्केट में लॉन्च कर दी गई यह दिखने में इंपोर्टेड साइकिल्स जैसी अच्छी तो नहीं थी लेकिन मजबूती में उनसे कई गुना बेहतर और चलाने में आरामदायक थी किसान दूध वाले मजदूर और नौकरी पेशा लोगों के लिए हीरो साइकिल्स एक सहारा बनने लगी हालांकि शुरुआत में सिर्फ 600 साइकिल्स का ही प्रोडक्शन होता था फिर बैंक से 50000 का लोन लेकर धीरे-धीरे प्रोडक्शन को बढ़ाया गया लेकिन उसी बीच 1968 में सबसे बड़े भाई दयानंद जी की डेथ हो गई पर ग्रोथ की रफ्तार को बाकी भाइयों ने कम नहीं होने दिया और 1986 आते-आते हीरो दुनिया का सबसे बड़ा साइकिल प्रोड्यूसर बन गया लेकिन साइकिल के अलावा दूसरी तरफ स्कूटर्स और मोपेड भी काफी पॉपुलर हो रहे थे पहले तो हीरो ने फ्रेंच कंपनी पजो के साथ कोलबोर्न की कोशिश की लेकिन जब बात नहीं बनी तो 1978 में उन्होंने हीरो मैजेस्टिक के नाम से 49 सीसी का मोपेड भी लॉन्च कर दिया रो के दो मॉडल्स पेसर एंड पैंथर को लोगों ने इतना पसंद किया कि कुछ ही समय में 35 पर से भी ज्यादा मोपेड मार्केट पर हीरो का कब्जा हो गया इस जबरदस्त रिस्पांस से हीरो और मोटिवेट हुआ और जल्द ही एक ऑस्ट्रियन कंपनी के साथ कोलबो में रो पुछ को मार्केट में उतार दिया जिसे खास तौर पर प्रीमियम कस्टमर्स को ध्यान में रखकर बनाया गया था अब हीरो ग्रुप साइकल और मोपेड सेगमेंट का किंग बन चुका था मुंजाल ब्रदर्स के पास किताबी ज्ञान तो नहीं था लेकिन जिस तरीके से उन्होंने बिजनेस को एक्सपेंड किया उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है वह इंडिया के हर हिस्से में गए ताकि एक मजबूत डीलर नेटवर्क एस्टेब्लिश किया जा सके साथ ही ब्रजमोहन लाल मुंजाल की पर्सनालिटी ऐसी थी कि लोग हीरो से बतौर डीलर या सप्लायर नहीं बल्कि एक परिवार की तरह जुड़ते थे प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने लोगों को ही फैक्ट्री के आसपास साइकिल और मोपेड के पार्ट्स बनाने के लिए राजी किया और इसके अलावा उन्होंने दुनिया की बेहतरीन प्रैक्टिसेस को भी अडॉप्ट किया इसमें सबसे खास था 80 के दशक में स्कूटर्स और मोपेड्स की पॉपुलर धीरे-धीरे घटने लगी लोग अब ज्यादा किफायती और बेहतर माइलेज वाली 100 सीसी कम्यूटर बाइक्स की तरफ अट्रैक्ट हो रहे थे उसी दौरान जापानी कंपनी के बीच एक म्यूचुअल एग्रीमेंट हुआ कि बाइक की टेक्नोलॉजी और इंजन honda.com लाल मुंजाल के बेटे रमन कांत मुंजाल को रो होंडा की कमान सौंपी गई और 1985 में हरियाणा के धारूहेड़ा प्लांट में बनी रो को इंडियन मार्केट में लॉन्च कर दिया गया फिल इट शट इट फॉरगेट इट इस टैग लाइन के साथ रो honda's को मार्केट में उतारा गया फिर साल आया लिबरलाइजेशन का जहां एक तरफ बाकी सारी ऑटोमोबाइल कंपनीज विदेशी ब्रांड्स के आने से तगड़ा कंपटीशन फेस कर रही थी वहीं रो एक शौक उनको तब लगा जब इसी साल अचानक रमन कांत मुंजाल की डेथ हो गई लेकिन ब्रजमोहन जी ने अपने दूसरे बेटे पवन मुंजाल के साथ कंपनी की बागडोर को फौरन अपने हाथ में ले लिया रो होंडा में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी थी क्योंकि पवन मुंजाल बिजनेस को डायवर्सिफाई करने के साथ ही अपने ब्रांड को तेजी से दुनिया के हर कोने में पहुंचाना चाहते थे फिर साल 1994 में कंपनी उस बाइक को मार्केट में लेकर आई जिसने रो honda's सेल्स इतनी तेजी से आगे बढ़ा कि साल 2001 तक रो एक छोटे से साइकिल ब्रांड को सेलेक्ट किया था लेकिन लिबरलाइजेशन के बाद वह अकेले अपने दम पर इंडिया में बिजनेस करने के लिए आजाद थे दूसरी तरफ था रो जिसे ज्यादातर हिस्सा रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर खर्च करने लगे यह देखकर honda's ने एक के बाद एक कुछ ऐसे स्टेप्स लेने शुरू कर दिए जिससे उनके बीच की दरार बढ़ती चली गई जैसे कि साल 95 में थी जिसके जवाब में रो ने भी साल 2005 में aa0 में hero7 26 पर स्टेक थे जिसमें के अलग होने का साल नहीं था बल्कि मुंजाल परिवार में भी प्रॉपर्टी का डिवीजन हुआ सबसे बड़े भाई दयानंद मुंजाल के परिवार को मजेस्टिक आटो मिला जो आज मोपेड के बिजनेस को बंद करके रियल स्टेट एंड फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट्स के फील्ड में एंटर कर चुके हैं सत्यानंद मुंजाल को रो मोटर्स दिया गया जो आज ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स की एक लीडिंग कंपनी है इसके अलावा हीरो साइकल्स को ओपी मुंजाल ने संभाल लिया और बाकी बचा रो मोटो कप जिसकी जिम्मेदारी ब्रजमोहन लाल मुंजाल को दी गई लेकिन दोस्तों अब कहानी पूरी तरह से बदलने वाली थी क्योंकि रो अभी भी अपना खुद का इंजन डेवलप नहीं कर पाया था उसने यूनिट शुरू करके उन्होंने दिखा दिया कि वाकई में वह हीरो हैं लेकिन दोस्तों अलग होने से पहले जिस रो honda's और एएफ डीलक्स की सेल्स के आगे तो अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े और उनकी नंबर वन की पोजीशन पर आज तलवार क्यों लटकी हुई है दरअसल डिवीजन के बाद हीरो का पूरा फोकस अपने 100 सीसी कम्यूटर सेगमेंट पर था क्योंकि स्पलेंडर और पैशन जैसे पॉपुलर ब्रांड तो उनके पास थे लेकिन की गांव और छोटे कस्बों में हीरो का दबदबा बरकरार रहा दूसरी तरफ अगर हम स्कूटर्स की बात करें तो honda.com m इस सेगमेंट में भी कुछ कमाल नहीं कर पाई रो प्लेजर को थोड़ी बहुत सक्सेस मिली लेकिन उसके बाद m डेनी और जम जैसे स्कूटर्स भी उनका मार्केट शेयर 15-20 पर से ऊपर नहीं ले जा सके रही बात इलेक्ट्रिक स्कूटर्स की तो उसमें भी hero2 में उसने v के नाम से इलेक्ट्रिक स्कूटर्स लॉन्च किए थे लेकिन तब तक ला एर बजज और टीवीएस मार्केट में अपनी पकड़ बना चुके थे आप सोच रहे होंगे कि रो ने तो ऑप्ट फोन और रो फ्लैश के नाम से सबसे पहले अपने इलेक्ट्रिक स्कूटर्स लॉन्च किए थे हां रो इलेक्ट्रिक ने लच किए थे लेकिन वह बि जिज मोहन लाल मुंजाल की रो मोटो कर्प से अलग है दरअसल 2007 में सत्यानंद मुंजाल के बेटे नवीन मुंजाल ने हीरो इलेक्ट्रिक को एस्टेब्लिश किया था उन्हें फर्स्ट मूवर होने का फायदा भी मिला और 2010 तक 6070 पर मार्केट पर उनका ही राज था लेकिन फैमिली डिवीजन के वक्त एक एग्रीमेंट हुआ था कि ो रो के नाम से इलेक्ट्रिक सेगमेंट में नहीं उतरेगा लेकिन कुछ ऐसे इंसीडेंट हुए कि 2020 आते-आते रो इलेक्ट्रिक मार्केट से लगभग गायब ही हो गया और इस सेगमेंट के पोटेंशियल को देखते हुए ो ने वीड के नाम से अपने इलेक्ट्रिक स्कूटर को लॉन्च कर दिया लेकिन इन सबके बावजूद रो को एक और बड़ा झटका लगा 2020 में जब गवर्नमेंट ने bs6 एमिशन नॉर्म्स को लागू किया बड़ी मेहनत से तो रो ने अपना इंजन डेवलप किया था जिसमें फिर काम करने की जरूरत पड़ गई और उनकी जो i3s और एक्सेंस टेक्नोलॉजी लोगों का भरोसा जीतना अभी शुरू ही की थी उस पर भी काफी नेगेटिव असर पड़ा वजह थी कि जहां एक तरफ स्लर और एएफ डीलक्स जैसे पॉपुलर बाइक्स के दाम में 5 टू 10000 का इजाफा हो गया वहीं दूसरी तरफ इंजन के पावर एंड परफॉर्मेंस में भी कमी महसूस हुई इंजन पहले जैसा स्मूथ नहीं रहा और थ्रोटल रिस्पांस में भी कमी देखने को मिली यह सारे रीजंस काफी थे रो मो काप की सेल्स को नीचे ले जाने के लिए और आज की बात करें तो hero's का फासला इतना कम हो गया है कि अगर जल्दी का है लेकिन दोस्तों जिस हीरो को नंबर वन पर रहने की आदत हो वह हार कैसे मान सकता है रो ने इन सारे इश्यूज को बारीकी से एनालाइज किया है और इसे सॉल्व करने के लिए तेजी से काम हो रहा है परफॉर्मेंस बाइक्स के लिए आर एडी में भारी निवेश करके एक्स पल्स एक्सट्रीम और करिज्मा जैसे मॉडल लांच किए गए हैं ताकि पलसर और अचे को कड़ी टक्कर दी जा सके और एक कदम आगे बढ़ते हुए रो ने हार्ले डेविडसन के साथ भी कोलैब किया है ताकि प्रीमियम सेगमेंट में भी अपनी पकड़ मजबूत बना सके और अगर ईवी सेगमेंट में भी v की एंट्री को देर आए दुरुस्त आय कहा जाए तो गलत नहीं होगा 2024 में टोटल टू व्हीलर्स की सेल्स करीब 18 मिलियन रही जिसमें से सिर्फ 56 पर इलेक्ट्रिक स्कूटर्स थी और इस सेगमेंट में v ने 2023 के मुकाबले 355 पर की ग्रोथ दर्ज करते हुए 55000 से भी ज्यादा स्कूटर्स सेल किए हैं आज थर एनर्जी में भी रो का 40 पर स्टेक है साथ ही बाइक्स के परफॉर्मेंस रिलेटेड इश्यूज को काफी सुधार कर रो अपने सेल्स एंड सर्विस को पहले से बेहतर बनाने पर ध्यान दे रही है हमें उम्मीद है कि अगले कुछ क्वाट में यह सारे एफर्ट्स उनके बैलेंस शीट में साफ तौर पर नजर आएंगे दोस्तों इंडिया की टू व्हीलर इंडस्ट्री ने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया है चाहे वह रो बजज टीवीएस हो या रॉयल इफील्ड एक हेल्दी कंपटीशन हमेशा देश की इकॉनमी और कंज्यूमर्स के लिए फायदेमंद साबित होता है थैंक्स फॉर वाचिंग
3) https://youtu.be/jgOD-cinMOc?si=Lfq8XTLE7LPipMFk
4) https://youtu.be/DZ2eRtPdn4c?si=uFtSq6N4VgAaHS07
5) https://youtu.be/MPwNLJBj4ao?si=FL9eC-x155PPE-lH
6) https://youtu.be/daZo4GMcCvc?si=HUzUFx-2SjfeY82u
7) https://youtu.be/SgAgzxhIWNc?si=uBeHRk3KUMJp3JY0
8) https://youtu.be/DumulqSgdgM?si=ZEGuLG2V37YkzdrN
9) https://youtu.be/S3iJ49f5HMo?si=iO0DV78zU5osB3Yd
10) https://youtu.be/gTP6TrPphkk?si=ICvfegkxl67puspb
अल्ट्राटेक देश का सबसे बड़ा सीमेंट ब्रांड कैपेसिटी इतना कि अमेरिका के सारे सीमेंट कंपनीज भी एक साथ आ जाए ना तो भी अकेले अल्ट्राटेक के जितना सीमेंट नहीं बना पाएंगे लेकिन रुकिए यह पोजीशन भी अब सेफ नहीं है क्योंकि जहां कुमार मंगलम बिरला को अल्ट्राटेक को यहां तक लाने में 57 साल लग गए थे वहीं गौतम अडानी ने सिर्फ 3 सालों में ही इंडिया का सेकंड लार्जेस्ट सीमेंट ब्रांड बना दिया और अब मार्केट में नंबर वन बनने की लड़ाई इतनी अग्रेसिव हो गई है कि लोगों ने इसे द ग्रेट सीमेंट वरक का टाइटल दे दिया है तो आखिर कैसे अल्ट्राटेक अपनी पोजीशन को टॉप पर बनाए रखने के लिए जी जान से लगा हुआ है आखिर ऐसी भी क्या जरूरत आन पड़ी कि गौतम अडानी को सीमेंट मार्केट में भी एंटर करना पड़ गया और इस वॉर का रिजल्ट भी क्या jio1 की तरह हाथ मिलाकर लोगों को लूटने पर खत्म होगा सब कुछ हम डिटेल में जानने वाले हैं आज के इस वीडियो में तो दोस्तों सबसे पहले अगर हम बात करें अल्ट्राटेक की तो यह बेसिकली दो कंपनियों को मर्ज करके बनाई गई थी पहली आदित्य बिल्ला ग्रुप की ग्रास सीमेंट और दूसरी लार्सन एंड टब की एलएनटी सीमेंट एक्चुअली बात है साल 2000 की जब एलएनटी कंपनी ने अपने सीमेंट बिजनेस को सेल करने का डिसीजन लिया उस टाइम पर यह इंडिया का लार्जेस्ट सीमेंट मैन्युफैक्चरर हुआ करता था जबकि वहीं आदित्य बिरला ग्रुप के ग्रासिम सीमेंट थर्ड लार्जेस्ट सीमेंट प्रोड्यूसर थी ग्रासिम ने साल 2000 के बाद से एलएनटी के सीमेंट बिजनेस को साल दर साल खरीदना शुरू कर दिया जैसे कि 2002 में 15 पर 2003 में 30 पर और 2004 में 51 पर शेयर बाय करके आदित्य बिरला ग्रुप के ग्रासिम ने पूरे कंपनी के मैनेजमेंट पे ही कंट्रोल कर लिया था और फिर 2004 में एल एनटी सीमेंट का नाम चेंज करके अल्ट्राटेक कर दिया गया और इस टाइम पर 30 मिलियन टंस पर एनम कैपेसिटी के साथ अल्ट्राटेक भारत के नंबर वन सीमेंट कंपनी बन गई थी वेल यहां पर याद रखिएगा 30 एमटीपीए के साथ अल्ट्राटेक फिलहाल नंबर वन सीमेंट कंपनी है क्योंकि वीडियो में कुछ टाइम के बाद से हम यहीं से आगे की बात करेंगे लेकिन फिलहाल अगर हम अडानी ग्रुप की बात करें तो फिर उन्होंने सीमेंट इंडस्ट्री में 2022 में एंट्री लिया जब उन्होंने इसी साल सितंबर में इंटरनेशनल ब्रैंड हॉल सिम से अंज और एसीसी सीमेंट को 6.4 बिलियन डॉलर यानी कि करीब 000 करोड़ में एक्वायर किया था और दोस्तों गौतम अडानी का यह सीमेंट मार्केट में घुसना कोई छोटा-मोटा एंट्री नहीं था क्योंकि वह एक ही झटके में इस एक्विजिशन के साथ अल्ट्राटेक के बाद से दूसरे सबसे बड़े प्लेयर बन गए थे वेल हम दोबारा चलते हैं 2004 में जब 30 मिलियन टंस पर एनम के साथ अल्ट्राटेक नंबर वन सीमेंट कंपनी बन गया था हालाकि कि भले ही उस समय पर अल्ट्राटेक कैपेसिटी के मामले में मार्केट लीडर था लेकिन इस टाइम u और एसीसी सीमेंट जैसे मिड साइज सीमेंट ब्रांड भी काफी तेजी से आगे बढ़ने लगे थे और ऐसा होने के पीछे सबसे बड़ा रीजन था अल्ट्राटेक का लेट स्टार्ट एक्चुअली अल्ट्राटेक ने मार्केट में एज अ सेपरेट एंटिटी 2004 में एंट्री लिया था जिसकी वजह से वह अपने कंपटीसन ब्रांड आइडेंटिटी और लॉयल कस्टमर बेस नहीं बना पाया था इसके साथ ही अल्ट्राटेक नाम नया होने की वजह से लोग अमोज और एसीसी को ज्यादा प्रेफर करने लगे थे इतना ही नहीं अमूजा और एसीसी ने इस अपॉर्चुनिटी को ग्रैब करने के लिए इंटरनेशनल ब्रांड हॉल सिम के साथ में हाथ मिला लिया जिसकी मदद से उन्हें ग्लोबल एक्सपर्टाइज्ड टेक्नोलॉजी का एक्सेस मिल गया जिससे कि अब यह कंपनीज लोगों को पहले से काफी अच्छी क्वालिटी की सीमेंट भी ऑफर करने लगी थी लेकिन दोस्तों यहां पर अल्ट्राटेक हाथ पर हाथ रखकर बैठने वालों में से थोड़ी थी भले उनका बाहर मार्केट में रिजल्ट नहीं दिख रहा था लेकिन अंदर ही अंदर वो कुछ ऐसा कर रहे थे जिसकी वजह से आगे चलकर सारे कंपटीसन से पीछे हो जाने वाले थे एक्चुअली अल्ट्राटेक अंदर ही अंदर अपना प्रोडक्शन कैपेसिटी बढ़ा रहा था जिसके लिए पहले तो उन्होंने कई सारी नई फैक्ट्रीज लगाई और फिर कुछ एजिस्टिफाई के स्टार सीमेंट को भी एक्वायर कर लिया जिसकी वजह से उन का कैपेसिटी बढ़कर 52 एमटीपीए तक हो गया वहीं दूसरी तरफ भले ही अंबुजा और एसीसी इंडियन सीमेंट मार्केट के डोमिनेटिंग प्लेयर थे लेकिन वोह लोग भी सिर्फ नॉर्थ और सेंट्रल इंडिया में ही ज्यादा एक्टिव थे जबकि बाकी के पूरे देश में अभी भी अलग-अलग और लोकल प्लेयर्स का ही बोलबाला हुआ करता था लेकिन दोस्तों क्या आपको पता है मार्केटिंग का फाइव पीस का रूल क्या कहता है कि पहले प्रोडक्ट बनाओ फिर प्राइस डिसाइड करो प्रोडक्ट को मार्केट में प्लेस करो और फिर जाकर प्रमोट करो जिससे कि पीपल यानी कि कस्टमर्स के पास आपका प्रोडक्ट आसानी से पहुंच जाए और दोस्तों एगजैक्टली इसी बिजनेस स्ट्रेटेजी को अल्ट्राटेक ने बखूबी यूज किया था एक्चुअली उन्होंने पहले प्रोडक्शन कैपेसिटी एक्सपेंड किया मार्केट में अपना प्रोडक्ट प्लेस किया और फाइनली जाकर प्रमोशन पर ध्यान दिया और दोस्तों इन्हीं बेहतरीन स्ट्रेटजी का ही असर था कि 2010 तक अल्ट्राटेक का कैपेसिटी 52 मिलियन टंस पर एनम हो चुका था हालांकि यह सब भी अल्ट्राटेक के लिए काफी नहीं था क्योंकि उनका पैन इंडिया प्रेजेंस अभी भी कम था जिस की वजह से इतनी कैपेसिटी होने के बाद भी लोकल प्लेयर्स ही अपने-अपने स्टेट में बाजी मार ले जाते थे अब जब अल्ट्राटेक ने यह एनालाइज किया कि वो मार्केट के कुछ लिमिटेड एरिया तक ही सीमित होकर रह गए हैं ऐसे में पूरे इंडिया पर राज करने के लिए उन्होंने कई सारी कंपनियों को खरीदना चालू किया और दोस्तों ये स्ट्रेटेजिक एक्विजिशंस अल्ट्राटेक को नॉर्थ से लेकर साउथ और ईस्ट से लेकर वेस्ट तक हर जगह पर टॉप पर ला दिया था जैसे कि इंडिया के वेस्ट रीजन में अपना प्रेजेंस एस्टेब्लिश करने के लिए 2013 में अल्ट्राटेक ने जेपी ग्रुप के गुजरात सीमेंट यूनिट को एक्वायर कर लिया था और कुछ इसी तरह से अजा और एसीसी डोमिनेटेड नॉर्थ और सेंट्रल इंडिया रीजन में अपना दबदबा बनाने के लिए 2017 में अल्ट्राटेक ने जयप्रकाश एसोसिएट्स के सीमेंट प्लांट्स को भी एक्वायर कर लिया और फिर ईस्ट इंडिया में अपनी पकड़ बनाने के लिए अल्ट्राटेक ने सेंचुरी टेक्सटाइल्स के सीमेंट बिजनेस को खरीद लिया और कुछ इस तरह से ईस्ट वेस्ट नॉर्थ और सेंट्रल इंडिया में अलग-अलग एक्विजिशंस के बाद अल्ट्राटेक चाइना के बाद दुनिया की पहली कंपनी बनी जिसने अपनी कैपेसिटी 100 मिलियन टंस पर एनएम से भी ज्यादा कर लिया था और दोस्तों यह सिर्फ कंपनी की ही नहीं बल्कि पूरे इंडिया की ग्लोबल लेवल पर एक बड़ी अचीवमेंट थी और दोस्तों अब 2019-20 तक अल्ट्राटेक का प्रॉफिट भी आसमान छूने लगा था क्योंकि इस फाइनेंशियल ईयर अल्ट्राटेक ने 4476 करोड़ का रिकॉर्ड रेवेन्यू जनरेट किया था अब दोस्तों अल्ट्राटेक अपनी जीत की खुशी मना ही रहा था कि इसी बीच एक नहीं बल्कि दो आफत अल्ट्राटेक के सर पर आन पड़ी अब पहले प्रॉब्लम को तो अल्ट्रा टेक ने जैसे-तैसे करके सॉल्व कर लिया लेकिन दूसरे प्रॉब्लम ने आदित्य बिरला के रातों की नींद उड़ाकर रख दी थी एक्चुअली फाइनेंशियल ईयर 2019-20 के खत्म होने से ठीक एक हफ्ते पहले कोविड-19 पेंडम की वजह से देश भर में लॉकडाउन लगानी पड़ गई जिस दौरान ट्रांसपोर्टेशन से लेकर फैक्ट्री सब कुछ थप पड़ गई इस लॉकडाउन के टाइम पर अल्ट्राटेक को और भी कंपनीज की तरह काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा जैसे कि शुरुआती कोविड पैंमिकन पर फैक्ट्रीज ढंग से ऑपरेट नहीं हो रही थी और इस की वजह से 117 एमटीपीए कैपेसिटी होने के बावजूद भी सिर्फ 76 एमटीपीए ही यूटिलाइज हो पा रहा था हालांकि इतना सब कुछ होने के बाद भी अल्ट्राटेक ने अपना स्ट्रांग फाइनेंशियल पोजीशन मेंटेन करके रखा और फिर जैसे ही जैसे इकॉनमी खुली वैसे-वैसे ही अल्ट्राटेक रिकवरी करने लगा लेकिन दोस्तों कोविड के बाद इससे भी बड़ा चैलेंज उनके सामने आ खड़ा हुआ जिसने ना सिर्फ अल्ट्राटेक को बल्कि पूरे सीमेंट इंडस्ट्री को ही हिलाकर रख दिया था एक्चुअली इस टाइम पर खबर आने लगी कि गौतम अडानी भी अब सीमेंट मार्केट में एंटर करने वाले हैं और वह भी कोई छोटी-मोटी एंट्री नहीं बल्कि ऐसी ग्रैंड एंट्री जिसने उन्हें एक ही झटके में अल्ट्राटेक के बाद दूसरा सबसे बड़ा प्लेयर बना दिया था एक्चुअली अडानी ग्रुप ने सितंबर 2022 में इंटरनेशनल ब्रांड हॉल सिम से अंबुज और एसीसी सीमेंट को 000 करोड़ में एक्वायर कर लिया था और इस एक्विजिशन के साथ ही गौतम अडानी को कुल 68 मिलियन टंस पर एनम की बड़ी कैपेसिटी थाली में सजी सजाई मिल गई पर हां अभी भी अडानी साहब शांत नहीं बैठे हैं क्योंकि उनका टारगेट 2028 तक अपनी कैपेसिटी बढ़ाकर 140 एमटीपीए पर ले जाना है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अडानी ग्रुप भी लगातार एक्विजिशंस करने में लगा हुआ है और दोस्तों छोटे-छोटे कई सारे कंपनीज को एक्वायर करके आज के टाइम पर अडानी का सीमेंट कैपेसिटी 85 मिलियन टंस पर एनम ऑलरेडी हो चुका है लेकिन दोस्तों सबसे बड़ा सवाल तो यह है ना क्या डनी के पास पहले से ही इतने सारे बिजनेसेस थे तो फिर उन्हें अचानक से सीमेंट बिजनेस में घुसने की खलबली क्यों मच गई तो दोस्तों अभी इंडिया में बहुत तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट हो रहा है चौड़े चौड़े रोड बन रहे हैं उन पर बड़े-बड़े ब्रिज डेवलप किए जा रहे हैं हॉस्पिटल्स मॉल्स पोर्ट एयरपोर्ट और कॉलेज सब कुछ बहुत तेज रफ्तार से बढ़ रहे हैं ऐसे में हर जगह पर सीमेंट का काम तो लगने ही वाला है और इस अपॉर्चुनिटी को ही ग्रैब करने के लिए गौतम अडानी सीमेंट बिजनेस में भी कूद पड़े हैं और हां अभी तक जिन-जिन बिजनेसेस में अडानी साहब पहले से ही मौजूद है ना वो भी सीमेंट बिजनेस को फुल्ली सपोर्ट करते हैं जैसे कि सीमेंट प्रोड्यूस करने के लिए बेसिकली लाइम स्टोन और फ्लाई ऐश की जरूरत होती है जो कि अडानी के पास उनके माइनिंग बिजनेस की वजह से पहले से ही भारी मात्रा में उपलब्ध है इसके बाद से सीमेंट बनाने वाली फैक्ट्रीज के लिए लगेगा इलेक्ट्रिसिटी तो फिर वोह भी अडानी पावर के पास से आ ही जाएगी और दोस्तों अगर बात करें सब कुछ तैयार होने के बाद से सीमेंट को देश विदेश तक भेजा कैसे जाएगा तो फिर यहां भी अडानी के पास में पोर्ट है जिससे वह समुद्री रास्ते पर तो राज करते ही हैं और रही बात हवाई रूड्स की तो यहां पर भी कई सारे एयरपोर्ट्स उनके अंडर में होने की वजह से उन्हें काफी सपोर्ट मिल जाने वाला है कहने का मतलब यह है कि सीमेंट बिजनेस के लिए अडानी मानो पहले से ही तैयार बैठे थे अब दोस्तों आज के डेट में इंडिया वर्ल्ड का सेकंड लार्जेस्ट सीमेंट प्रोड्यूसर है लेकिन हमारा पर कैपिटा कंजप्शन सिर्फ 250 किलो है तो वहीं चाइना का 1600 किलो बेसिकली पर कैपिटा कंजप्शन का मतलब है किसी भी कंट्री में एक आदमी ऑन एन एवरेज कितना सीमेंट यूज़ कर रहा है अब इंडिया सीमेंट बनाने में तो दूसरे नंबर पर है लेकिन अभी हमारी खपत बहुत कम है जो कि चाइना के आंकड़ों को देखकर लगता है कि आगे चलकर काफी ज्यादा बढ़ने वाला है और दोस्तों अगर इतना ही पोटेंशियल है तो फिर इसका फायदा कौन नहीं उठाना चाहेगा यही रीजन है कि अडानी जी भी सीमेंट इंडस्ट्री में कूद पड़े हैं और अब दो दिग्गजों के बीच इंडिया में सीमेंट वॉर छेड़ गया है अब दोस्तों अभी तक आपने देखा कि कैसे अडानी ग्रुप बड़े-बड़े एक्विजिशंस करके इंडिया का सेकंड लार्जेस्ट सीमेंट ब्रांड बन गया है और उनके क्या फ्यूचर स्ट्रेटजीजर वन सीमेंट ब्रांड बनने के लिए लेकिन सवाल आता है कि इस दौरान अल्ट्राटेक क्या कर रहा है अब दोस्तों जैसा कि आप जानते ही हैं कि कुमार मंगलम बरला अल्ट्राटेक सीमेंट के मालिक हैं और यह भी कोई ऐसी छोटी-मोटी हस्ती नहीं हैं जो चुपचाप बैठ जाएं अल्ट्राटेक का करंट कैपेसिटी 152 मिलियन टंस पर एनम है और यह कैपेसिटी इतना ज्यादा है कि यूएस के सारे सीमेंट कंपनीज के कैपेसिटी को भी मिलाकर डेढ़ गुना और पूरे यूरोप में बसे 20-22 देशों के कैपेसिटी का भी 80 पर के बराबर है और आगे भी अपने नंबर वन का पोजीशन मेंटेन रखने के लिए अल्ट्राटेक ने काफी सारे एक्विजिशन करने शुरू कर दिए हैं 2020 तक अल्ट्राटेक ने नॉर्थ सेंट्रल ईस्ट और वेस्ट इंडिया को तो कैप्चर कर ही लिया था लेकिन साउथ इंडिया अभी भी बचा हुआ था इसीलिए उन्होंने साउथ इंडिया पर अपना डोमिनेंस जमाने के लिए एक तो अपना नया सीमेंट प्लांट तमिलनाडु में सेटअप किया है और दूसरा इंडिया सीमेंट कंपनी को भी एक्वायर कर लिया है और दोस्तों आपको बताता चलूं कि इंडिया सीमेंट वही एन श्रीनिवासन की कंपनी है जो कि आईएल टीम सीएसके के ओनर हैं फ्यूचर की अगर बात करें तो बिरला ग्रुप ने अपने सीमेंट बिजनेस में ₹2000000 jio1 नहीं कर रहे हैं वह सीमेंट मार्केट में भी ना हो जाए क्योंकि छोटे-छोटे प्लेयर्स को तो यह लोग खरीद ही ले रहे हैं और लास्ट में बस यही दो लोग बचे और हाथ मिला लिए तो फिर हम और आप जैसे लोगों के लिए यह काफी भारी पड़ सकता है वैसे अगर आप jio1 नहीं और देश में चल रहे टेलीकॉम इमरजेंसी को जानना चाहते हैं तो फिर डिस्क्रिप्शन में दिए गए लिंक से वीडियो को जरूर देखिएगा
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