Moral
2) https://youtu.be/wN7n0JTkCGA?si=OaqG4-_BhXKus4A1
बहुत दिनों पहले की बात है। शांतिपुर में एक बहुत बड़ा जंगल था। उस जंगल में मीनी नाम का एक बंदरिया अपने दो बच्चों के साथ रहा करती थी। बच्चों में से बड़े का नाम था मिंटू और छोटे का नाम था चिंटू। मिनी अपने बच्चों को बहुत प्यार करती थी और बड़े ही लाड़ प्यार से उनका पालन पोषण करते थे। वह उन्हें अच्छे अच्छे भोजन भी लाकर दिया करते थे। कुछ महीने पहले ही मिनी के पति की मौत हो गई। तब से वह अपने बच्चों को कभी भी पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। देखो मेरे बच्चों, मैं तुम दोनों के लिए केले लाई हूं। अरे वाह मजा आ गया मुझे केले चाहिए, मुझे केले चाहिए। नहीं नहीं, मुझे पहले दो। माँ मैं बड़ा हूँ, मैं पहले खा लूँगा। हाँ बाबा हाँ सबको बराबर दूँगी। शांति से बैठो जरा। मैं यह केले तुम दोनों के लिए ही तो लाई हूँ। पहले तुम दोनों को खिलाऊंगी, उसके बाद जो बचेगा मैं खा लूंगी। मेरे प्यारे बच्चों, आओ मेरे पास आओ। फिर दोनों बच्चों खाना शुरू करते हैं। खाने के बाद मिंटू अपने माँ से कहता है माँ इतने मीठे केले तुम कहाँ से लेकर आती हो? मुझे भी तुम्हारे साथ ले चलो न माँ, मैं भी मीठे केले लाऊंगा। मेरे प्यारे बच्चों, तुम लोग जब बड़े होकर पेड़ पर छलांग लगाने के काबिल हो जाओगे तब मैं तुम दोनों को सारे ठिकाने दिखा दूंगी। अब तुम दोनों बहुत छोटे हो, घर में ही रहा करो बाहर बहुत खतरा है। अच्छा ठीक है, तुम जैसा कहोगे हम वही मान कर चलेंगे। माँ, मैं तो बिलकुल बाहर नहीं जाऊँगा। माँ। बाहर बहुत खतरा है। तुम मुझे खाना ले कर दोगे और मैं बैठे बैठे खा लूँगा। लेकिन मेरे बच्चे मैं तो हमेशा जीवित नहीं रहूंगी। मेरी भी तो उम्र हो रही है। बड़े होने के साथ साथ तुम दोनों को जंगल के सब कुछ सीख लेना होगा। नहीं तो मैं जब नहीं रहूंगी तो मुसीबत में पड़ जाओगे। नहीं माँ तुम्हें कुछ नहीं होगा। इसी तरह समय बीतता गया और समय बीतने के साथ साथ मिंटू और चिंटू बड़े होते जाते हैं। मेरे प्यारे बच्चों, तुम दोनों अब बड़े हो गए हो, इसलिए मैं चाहती हूं कि तुम दोनों मेरे साथ चलकर भोजन की तलाश करना सीखो। जंगल के नियम के बारे में जानो , जिससे तुम लोग खुद से अपना भोजन ढूंढ़ कर अपना पेट भर सको। हा हा मां, मैं तो कब से जाने के लिए तैयार हो। मुझे अभी ले चलो। मां, मैं इस घर के बाहर कभी नहीं गया हो। मुझे जंगल देखने का बहुत मन कर रहा है मां। नहीं मां, मैं नहीं जाऊंगा। मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है। तुम दोनों जाओ। अच्छा अच्छा ठीक है, कोई बात नहीं, मैं तुम्हारे लिए भोजन लाऊंगी। फिर मां बेटे भोजन लाने के लिए जंगल के तरफ चले जाते हैं और चिंटू घर में बैठकर आराम करने लगते हैं। इसी तरह कुछ और दिन बीत जाता है। चिंटू को इसी तरह बिना हाथ पैर चलाए भोजन मिलने लगा, जिससे वह और भी आलसी हो गया। बाद में जब उसकी मां उसे जंगल में जाने के लिए कहती थी तो वह कुछ न कुछ बहाना बना देता था। बेटा चिंटू, क्या आज तुम मेरे साथ चलोगे? ऐसे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। तुम्हें भी तो खाना ढूंढना सीखना होगा। नहीं मां, मेरे पैरों में बहुत दर्द हो रहा है और फिर जंगल से भोजन लेकर आना इसमें कौन सी बड़ी बात है? तुम मुझे फालतू में परेशान कर रही हो। अच्छा ठीक है, तुम आराम करो। मैं खाना लेकर आती हूं। मिनी को यह बात समझ में आ जाती है कि चिंटू की आदत बिगड़ गई है। वह आलसी हो गया है। अगर वह अभी भी नहीं सुधरा तो उसे एक दिन बहुत बुरे वक्त का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह मैंने उसके भविष्य को लेकर चिंतित हो जाती है। लेकिन चिंटू को लगता था कि उसकी मां उसे अपने साथ ले जाकर बस परेशान करना चाहती है। खाना ढूंढना तो वह सीख ही लेगा, लेकिन अभी नहीं। इसी बीच एक दिन मीनू की मौत हो जाती है। दोनों भाई मां के पास खड़ा होकर बहुत रोने लगते हैं। अगले दिन मिंटू अपने भाई को कहता है, देखो भाई, अब हमारी मां नहीं रही। अब हमें खुद से सारा काम करना पड़ेगा। अरे तुम तो मेरे भाई हो ना। तुम्हारे रहते मुझे किस बात की चिंता है? हां, तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है। लेकिन हमें अपना जीवन जीने के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी है। मैं कब तक तुम्हारा साथ दूंगा? अरे भैया, ज्यादा ज्ञान मत दो। जंगल से मेरे खाने के लिए कुछ भोजन लाते हो तो तुम इसीलिए अपने आप को बड़ा महान समझने लगे हो। मिंटू को अपने भाई की बात सुनकर बहुत दुख होता है, लेकिन वह उसका साथ नहीं छोड़ पाता। उसके साथ ही रहने लगता है। इधर चिंटू अपने भाई के बातों को अनसुना कर उसी पर आश्रित होकर मजे करने लगता है। अरे चिंटू, कहां हो? यह देखो। आज मैं तुम्हारे लिए आम लेकर आया हूं। जल्दी आओ। आम बहुत ही स्वादिष्ट है। फिर चिंटू अपने भाई के पास आकर आम खाने लगता है। इसी तरह दिन बीतता गया। एक दिन उस जंगल में एक बदमाश शेर आता है। जो भी प्राणी उसके सामने आता है, उसे वह शिकार कर लेता है। सभी प्राणी डर के मारे अपने अपने घर में छुप जाते हैं। भाई चिंटू, जंगल में एक खतरनाक शेर आ गया है। तुम उससे बच कर रहना। जब तक मैं खाना लेकर नहीं आ जाता तब तक तुम सावधान रहना। ठीक है, तुम मेरी चिंता मत करो। मिंटू पेड़ से उतर कर भोजन की तलाश में निकल जाता है। तभी वह शेर उसका पीछा करता है। मिंटू शेर को देखकर दौड़ने लगता है। फिर किसी तरह एक पेड़ पर चढ़ जाता है और अपना प्राण बचा लेता है। लेकिन वह शेर उस पेड़ के नीचे बैठ बैठकर मिंटू के उतरने का इंतजार करने लगता है। यह शेर तो मेरे पीछे ही पड़ गया। अब मैं अपने घर कैसे जाऊंगा। इसी तरह रात हो जाती है, लेकिन शेर वहां से नहीं हटता। जिस कारण मिंटू अपने घर नहीं जा पाता। उधर चिंटू अपने भाई के घर ना लौटने के कारण भूखा ही रह जाता है। लेकिन वह भोजन के लिए कोई भी कोशिश नहीं करता। पता नहीं मेरे भाई को क्या हो गया। कहीं ऐसा तो नहीं वह जानबूझकर आज वापस नहीं आया? मैं सुबह से भूखा हूं। अब मैं क्या करूं? बहुत भूख लगी है। चिंटू पूरी रात ही भूखा रहता है। अगली सुबह मिंटू घर वापस आता है और अपने भाई को खाना देता है। भैया, तुम्हारी वजह से मुझे पूरी रात भूखा ही रहना पड़ा। तुम तो भूखे रहे। मेरी तो जान ही खतरे में थी। अच्छा ऐसा क्या हुआ तुम्हारे साथ? मिंटू अपने भाई को सारी बात बताता है। फिर उसे कहता है। इसीलिए तो कहता हो तुम खुद से कुछ काम कर लिया करो, जिससे जरूरत पड़ने पर बुरे समय का सामना कर सको। अच्छा ठीक है, ठीक है। इसी तरह समय बीतने लगता है। कुछ दिनों में बारिश का मौसम भी आ जाता है और तेजी से बारिश शुरू हो जाती है। भैया, बहुत भूख लगी है। कुछ खाना ला कर दो ना। रहा नहीं जा रहा है।
4) https://youtu.be/pzhmU9wF97Q?si=B44wAm_RVnPWuZlT
चल बे गधे, अब जल्दी घर भी चलेगा या यहीं रात करेगा। खाने में तो कोई कसर नहीं छोड़ता, फिर चलने में इतनी कंजूसी क्यों करता है? मर गया रे! इस धोबी ने तो कपड़े लाद लाद कर मेरा कचूमर निकाल दिया है। हे भगवान! मुझे इस धोबी से बचाओ। मुझे इस धोबी से बचा लो भगवान। इस तरह से गधा जब भी बोझा लाद कर आता तो कराहते हुए भगवान को याद करता। एक दिन ले। खा खा खा कर तो गंदा हो गया है लेकिन कम करने में तेरी नानी मरने लगती है। फटाफट खा ले और चल। कपड़े लेने जाना है। अब चलेगा भी या तेरे लिए डोली मंगा लू। चल।
हे भगवान! मुझे इस धोबी से बचाओ। यह गधा रोज मुझे सच्चे मन से याद करता है। इसकी भक्ति ने मुझे प्रसन्न कर दिया। अब मुझे इसको दर्शन देना चाहिए। ऐसा सोच भगवान उस गधे के सामने प्रकट हुए। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। गधा। कहो क्या बात है? तुम इस तरह से मुझे रोज रोज क्यों ध्यान करते हो? तुम्हारे मन में जो भी कामना है, मुझे बताओ, मैं उसे पूरा करने के लिए आया हूं। हां, ये कौन आ गया भगवान बनकर। भगवान तो यह हो नहीं सकते। यह जरूर उस धोबी की ही चाल है। यह वही है जो मुझे भगवान बनकर ठगना चाहता है। अरे क्या सोच रहे हो गधे? मांगो क्या मांगते हो? मैं सोच रहा हूं प्रभु कि मैं आप जैसा नहीं हूं। गधा हूं पर मूर्ख नहीं हूं। मुझे समझ में आती है भगवान में और धोबी में फर्क। मैं उतना बेवकूफ नहीं हूं। हा हा हा हा हा हा हा। अब मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाएं? गधे अगर आप सही में भगवान हैं तो बताइए सभी जानवरों के तो सींग है। मेरे सींग क्यों नहीं हैं? तुम्हारा सींग मेरे पास है। यह देखो। मेरा सींग आपके पास है। इसका मतलब आप सच में भगवान हैं। हां गधे, मैं सच में भगवान हूं। एक बात बताइए भगवान सब तो मुझे गधा समझते ही हैं। क्या आप भी मुझे गधा ही समझते हैं? अरे नहीं नहीं, तुम तो गधे राज हो। गधे ने जैसे ही यह सुना, वह खुश हो गया। फिर गधे ने कहा। भगवान, मुझे अब इस धरती पर रहने की लालसा नहीं है। मुझे भी अपने साथ स्वर्ग ले चलें। प्रभु। मैं तुम्हारे भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। गधे राज। ऐसा ही होगा। गधा भी भगवान के साथ स्वर्ग चला गया। भगवान आपने तो मुझे सच के स्वर्ग में ला दिए। अब तो मैं यहां खूब मजे से रहूंगा। हां, गधे राज, अब से तुम यहां खूब आराम से रहो। अब गधा वहां खूब मौज से रहने लगा। बागों में हरी हरी घास खाता और दिन भर घूमता रहता। एक दिन गधा घास खाते खाते इंद्रदेव के बाग में चला गया। कौन है यह गधा जो महाराज इंद्रदेव के बाग में घुसा चला आया? क्यों गधे? क्या तुम्हें नहीं पता कि यह इंद्रदेव का बाग है? यहां गधों का आना सख्त मना है। अरे! अरे मुझे नहीं पता था भाई। मैं यहां कोमल कोमल घास देखा तो चला आया खाने के लिए। आज चेतावनी देकर छोड़ रहा हूं। फिर दोबारा यहां मत देखना। चल निकल जा यहां से। आज तो बुरा फंसा था। वो तो अच्छा हुआ कि उसने मुझे घास खाते नहीं देखा था। कुछ दिन बीतते हैं। अब गधे को वहां बहुत अकेला सा लगने लगा था। एक दिन भगवान उसका हाल चाल जानने आए। क्यों गधे राज? दिन तो मौज से बीत रहे हैं ना। वह बहुत उदास और मायूस होकर भगवान से कहता है भगवन! मैं यहां बिल्कुल अकेला हूं। मुझे मेरे साथियों की बहुत याद आ रही है। अगर उन्हें भी आप यहां बुला लें तो बहुत अच्छा रहेगा। भगवन! जैसी तुम्हारी इच्छा गजराज तुम्हारे साथियों को भी बुला लाता हूं। ऐसा बोल भगवान अंतर्ध्यान हो गए और पृथ्वी से कुछ और गधों को लेकर वहां गए। यह लो गधेरा आज मैं तुम्हारे साथियों को भी ला दिया। अब इन सबके साथ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। अब गधा बहुत खुश हुआ। अपने साथी गधे को लेकर बागों में घास खाने चला गया। जब घास खाकर सारे गधे एक साथ जमा होते हैं तो सभी गधों ने गाना गाना शुरू किया। हा हा हा हा हा हा हा। सभी गधों ने अपने आवाज से पूरे स्वर्ग को संगीतमय बना दिया। जब उसकी आवाज से स्वर्ग की शांति भंग होने लगी तो भगवान वहां आए। यह तुम क्या कर रहे हो? गधे राज! तुम्हारे कारण स्वर्ग की शांति भंग हो रही है। हम तो गाना गा रहे भगवन! हमारे गाने से मन को शांति मिलती है भगवन! लेकिन गधे राज। यह धरती नहीं स्वर्ग है और यहां आपकी यह ढेंचू ढेंचू की आवाज नहीं चलेगी। यहां रहना है तो तुम्हें अपनी आवाज पर अंकुश लगाना होगा। भगवन! तब तो यह सरासर ज्यादती हुई। क्या हमें बोलने का अधिकार नहीं मिलेगा? फिर मैं अपने सुरीली आवाजें किसको सुनाऊंगा? गधे राज। तुम्हारे आवाजों से हमारे ध्यान में विघ्न पड़ रही है। यह हमारी आखिरी चेतावनी समझो और इस पर अमल करो। भगवन! अगर ऐसी बात है तो मुझे नहीं रहना है यहाँ। हमें हमारे धरती पर भेज दो वहाँ हम लोग कम से कम आज़ादी से बोल तो सकते हैं। जैसी तुम्हारी इच्छा। गंधराज। जब तुम्हारी इच्छा धरती पर ही जाने को है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? चलो, मैं तुम्हें धरती पर भेज देता हूँ। गधे ने जब धरती पर जाने की बात सुनी तो वह खुशी से झूमने लगा। तभी। चल उठ जा गधे! कब से लगातार चिल्लाए जा रहा है। न जाने दिन में सोया सोया कौन सा सपना देखा रहता है। गधा घबराकर उठता है। हाँ। क्या मैं यह सब सपने में देख रहा था? अब चल जल्दी से खाना खत्म कर और फिर कपड़ा लेने जाना है। और हाँ, दोबारा सो मत जाना। चलो सपने में ही सही, स्वर्ग के दर्शन तो हो गए। लेकिन मुझे स्वर्ग से अधिक प्यारी यह धरती ही है। अब से मैं इच्छा भरकर सबको अपने गाने तो सुना सकता हूँ। मुझे उस धुएँ से क्या मतलब? हिरण भाई! वह तो अपना गधा भाई उस धुएँ को देख कर डर गया और इधर से दौड़ते हुए जा रहा था। उसे लगा की शायद जंगल में आग लग गई। वह अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था। अब तक तो वह न जाने कितनी दूर निकल गया होगा। तो तुमने उसे रोका क्यों नहीं? तुम्हें उस मूर्ख गधे को रोकना चाहिए था। भरतपुर के जंगल में कई सारे जानवर रहते थे। उनमें एक गधा भी था। गधे का मानना था कि जंगल में उसके जैसा समझदार जानवर कोई है ही नहीं। वह हर समय ऊटपटांग हरकत करता और बिना मतलब की बातें सोचता रहता। कभी कभी उसके सोच के चक्कर में तो जंगल के जानवर भी फंस जाते थे। एक दिन। भई वाह! आज तो हरी हरी घास खाकर मजा आ गया। मेरा पेट तो भर ही चुका है। अब इस पेड़ की छांव में थोड़ा आराम कर लूं, फिर आगे चलूंगा। ऐसा सोच गधा पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगा और आराम करते करते इधर उधर की ऊटपटांग बातें सोचने लगा। मेरे जैसा बुद्धिमान इस जंगल में कोई नहीं। तभी तो समस्या आने से पहले मैं उससे बचने का रास्ता निकालता हूं। जैसे मान लेता हूं मैं यहां बैठा हूं और जंगल में आग लग जाए तो मेरा क्या होगा? मैं तो बेमौत ही झुलसकर मर जाऊंगा। तभी उसकी नजर जंगल के दूसरे छोर से उड़ रहे धुएं पर पड़ी। धुआं देखकर गधा घबरा गया। अरे, यह तो सचमुच जंगल में आग लग गई। इसका मतलब अब मैं मारा जाऊंगा। नहीं नहीं, इससे पहले कि आग मुझे अपनी चपेट में ले ले, मुझे यह जंगल छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर भागना चाहिए।
हे भगवान! मुझे इस धोबी से बचाओ। यह गधा रोज मुझे सच्चे मन से याद करता है। इसकी भक्ति ने मुझे प्रसन्न कर दिया। अब मुझे इसको दर्शन देना चाहिए। ऐसा सोच भगवान उस गधे के सामने प्रकट हुए। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। गधा। कहो क्या बात है? तुम इस तरह से मुझे रोज रोज क्यों ध्यान करते हो? तुम्हारे मन में जो भी कामना है, मुझे बताओ, मैं उसे पूरा करने के लिए आया हूं। हां, ये कौन आ गया भगवान बनकर। भगवान तो यह हो नहीं सकते। यह जरूर उस धोबी की ही चाल है। यह वही है जो मुझे भगवान बनकर ठगना चाहता है। अरे क्या सोच रहे हो गधे? मांगो क्या मांगते हो? मैं सोच रहा हूं प्रभु कि मैं आप जैसा नहीं हूं। गधा हूं पर मूर्ख नहीं हूं। मुझे समझ में आती है भगवान में और धोबी में फर्क। मैं उतना बेवकूफ नहीं हूं। हा हा हा हा हा हा हा। अब मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाएं? गधे अगर आप सही में भगवान हैं तो बताइए सभी जानवरों के तो सींग है। मेरे सींग क्यों नहीं हैं? तुम्हारा सींग मेरे पास है। यह देखो। मेरा सींग आपके पास है। इसका मतलब आप सच में भगवान हैं। हां गधे, मैं सच में भगवान हूं। एक बात बताइए भगवान सब तो मुझे गधा समझते ही हैं। क्या आप भी मुझे गधा ही समझते हैं? अरे नहीं नहीं, तुम तो गधे राज हो। गधे ने जैसे ही यह सुना, वह खुश हो गया। फिर गधे ने कहा। भगवान, मुझे अब इस धरती पर रहने की लालसा नहीं है। मुझे भी अपने साथ स्वर्ग ले चलें। प्रभु। मैं तुम्हारे भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। गधे राज। ऐसा ही होगा। गधा भी भगवान के साथ स्वर्ग चला गया। भगवान आपने तो मुझे सच के स्वर्ग में ला दिए। अब तो मैं यहां खूब मजे से रहूंगा। हां, गधे राज, अब से तुम यहां खूब आराम से रहो। अब गधा वहां खूब मौज से रहने लगा। बागों में हरी हरी घास खाता और दिन भर घूमता रहता। एक दिन गधा घास खाते खाते इंद्रदेव के बाग में चला गया। कौन है यह गधा जो महाराज इंद्रदेव के बाग में घुसा चला आया? क्यों गधे? क्या तुम्हें नहीं पता कि यह इंद्रदेव का बाग है? यहां गधों का आना सख्त मना है। अरे! अरे मुझे नहीं पता था भाई। मैं यहां कोमल कोमल घास देखा तो चला आया खाने के लिए। आज चेतावनी देकर छोड़ रहा हूं। फिर दोबारा यहां मत देखना। चल निकल जा यहां से। आज तो बुरा फंसा था। वो तो अच्छा हुआ कि उसने मुझे घास खाते नहीं देखा था। कुछ दिन बीतते हैं। अब गधे को वहां बहुत अकेला सा लगने लगा था। एक दिन भगवान उसका हाल चाल जानने आए। क्यों गधे राज? दिन तो मौज से बीत रहे हैं ना। वह बहुत उदास और मायूस होकर भगवान से कहता है भगवन! मैं यहां बिल्कुल अकेला हूं। मुझे मेरे साथियों की बहुत याद आ रही है। अगर उन्हें भी आप यहां बुला लें तो बहुत अच्छा रहेगा। भगवन! जैसी तुम्हारी इच्छा गजराज तुम्हारे साथियों को भी बुला लाता हूं। ऐसा बोल भगवान अंतर्ध्यान हो गए और पृथ्वी से कुछ और गधों को लेकर वहां गए। यह लो गधेरा आज मैं तुम्हारे साथियों को भी ला दिया। अब इन सबके साथ तुम्हारा मन भी लगा रहेगा। अब गधा बहुत खुश हुआ। अपने साथी गधे को लेकर बागों में घास खाने चला गया। जब घास खाकर सारे गधे एक साथ जमा होते हैं तो सभी गधों ने गाना गाना शुरू किया। हा हा हा हा हा हा हा। सभी गधों ने अपने आवाज से पूरे स्वर्ग को संगीतमय बना दिया। जब उसकी आवाज से स्वर्ग की शांति भंग होने लगी तो भगवान वहां आए। यह तुम क्या कर रहे हो? गधे राज! तुम्हारे कारण स्वर्ग की शांति भंग हो रही है। हम तो गाना गा रहे भगवन! हमारे गाने से मन को शांति मिलती है भगवन! लेकिन गधे राज। यह धरती नहीं स्वर्ग है और यहां आपकी यह ढेंचू ढेंचू की आवाज नहीं चलेगी। यहां रहना है तो तुम्हें अपनी आवाज पर अंकुश लगाना होगा। भगवन! तब तो यह सरासर ज्यादती हुई। क्या हमें बोलने का अधिकार नहीं मिलेगा? फिर मैं अपने सुरीली आवाजें किसको सुनाऊंगा? गधे राज। तुम्हारे आवाजों से हमारे ध्यान में विघ्न पड़ रही है। यह हमारी आखिरी चेतावनी समझो और इस पर अमल करो। भगवन! अगर ऐसी बात है तो मुझे नहीं रहना है यहाँ। हमें हमारे धरती पर भेज दो वहाँ हम लोग कम से कम आज़ादी से बोल तो सकते हैं। जैसी तुम्हारी इच्छा। गंधराज। जब तुम्हारी इच्छा धरती पर ही जाने को है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ? चलो, मैं तुम्हें धरती पर भेज देता हूँ। गधे ने जब धरती पर जाने की बात सुनी तो वह खुशी से झूमने लगा। तभी। चल उठ जा गधे! कब से लगातार चिल्लाए जा रहा है। न जाने दिन में सोया सोया कौन सा सपना देखा रहता है। गधा घबराकर उठता है। हाँ। क्या मैं यह सब सपने में देख रहा था? अब चल जल्दी से खाना खत्म कर और फिर कपड़ा लेने जाना है। और हाँ, दोबारा सो मत जाना। चलो सपने में ही सही, स्वर्ग के दर्शन तो हो गए। लेकिन मुझे स्वर्ग से अधिक प्यारी यह धरती ही है। अब से मैं इच्छा भरकर सबको अपने गाने तो सुना सकता हूँ। मुझे उस धुएँ से क्या मतलब? हिरण भाई! वह तो अपना गधा भाई उस धुएँ को देख कर डर गया और इधर से दौड़ते हुए जा रहा था। उसे लगा की शायद जंगल में आग लग गई। वह अपनी जान बचाने के लिए भाग रहा था। अब तक तो वह न जाने कितनी दूर निकल गया होगा। तो तुमने उसे रोका क्यों नहीं? तुम्हें उस मूर्ख गधे को रोकना चाहिए था। भरतपुर के जंगल में कई सारे जानवर रहते थे। उनमें एक गधा भी था। गधे का मानना था कि जंगल में उसके जैसा समझदार जानवर कोई है ही नहीं। वह हर समय ऊटपटांग हरकत करता और बिना मतलब की बातें सोचता रहता। कभी कभी उसके सोच के चक्कर में तो जंगल के जानवर भी फंस जाते थे। एक दिन। भई वाह! आज तो हरी हरी घास खाकर मजा आ गया। मेरा पेट तो भर ही चुका है। अब इस पेड़ की छांव में थोड़ा आराम कर लूं, फिर आगे चलूंगा। ऐसा सोच गधा पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगा और आराम करते करते इधर उधर की ऊटपटांग बातें सोचने लगा। मेरे जैसा बुद्धिमान इस जंगल में कोई नहीं। तभी तो समस्या आने से पहले मैं उससे बचने का रास्ता निकालता हूं। जैसे मान लेता हूं मैं यहां बैठा हूं और जंगल में आग लग जाए तो मेरा क्या होगा? मैं तो बेमौत ही झुलसकर मर जाऊंगा। तभी उसकी नजर जंगल के दूसरे छोर से उड़ रहे धुएं पर पड़ी। धुआं देखकर गधा घबरा गया। अरे, यह तो सचमुच जंगल में आग लग गई। इसका मतलब अब मैं मारा जाऊंगा। नहीं नहीं, इससे पहले कि आग मुझे अपनी चपेट में ले ले, मुझे यह जंगल छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर भागना चाहिए।
https://youtu.be/6J-EyKhvtDo?si=p9Lxxn8tM62ImCJ6
https://youtu.be/PO27DsqDPWc?si=AvDSYiYc1HFLvTyC
Historical
1) https://youtu.be/8GEmFxfqy9s?si=bpjspgJ_rFd4jV6m
विश्व प्रसिद्ध अजंता की गुफाएं मानवीय इतिहास में शिल्पकला और चित्रकला के सबसे शानदार उदाहरण हैं। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से करीब 450 किलोमीटर दूर अजंता की गुफाओं को बड़े बड़े पहाड़ों और चट्टानों को काटकर तैयार किया गया था, जो आकार में एक घोड़े की नाल की तरह है। सहयाद्री पर्वतमाला में बनी ये गुफाएं औरंगाबाद के पास घोड़ा नदी के पास स्थित हैं। यहीं से कुछ दूरी पर अजंता नाम का एक गांव बसा है और इसी के आधार पर अजंता की गुफाओं का नामकरण किया गया है। इसमें कुल 29 गुफाएं हैं। यहां की दीवारों और छतों पर भगवान बुद्ध से जुड़ी विभिन्न घटनाओं को बखूबी दिखाया गया है। यहां दो तरह की गुफाएं हैं विहार और चैत्यगृह। विहार की संख्या 25 है तो चैत्य गृहों की संख्या चार है। एक और विहार का इस्तेमाल बौद्ध रहने के लिए करते थे तो चैत्य गृह का इस्तेमाल ध्यान स्थल के रूप में किया जाता था। इन गुफाओं के अंत में स्तूप बने हैं जो भगवान बुद्ध का प्रतीक है। कब हुई खोज? जंगली जानवरों और स्थानीय भील समुदायों को छोड़कर बाहरी दुनिया के लिए अजंता की गुफाएं हजारों वर्षों तक अज्ञात रही। इन गुफाओं की खोज 1819 में मद्रास रेजीमेंट के एक युवा सैन्य अधिकारी जॉन स्मिथ ने की थी। फिर 1983 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया। कहा जाता है की जॉन स्मिथ शिकार की तलाश में निकले थे तभी उन्होंने घोड़ा नदी के सामने एक गुफा के मुहाने को देखा जो इंसानों द्वारा बनाया हुआ लग रहा था। इसके बाद वह अपनी टीम के साथ गुफा में गए। वहां उन्होंने दीवारों में शानदार नक्काशी देखी और उनके सामने ध्यान लगाते बुद्ध की एक प्रतिमा थी। उन्होंने अपने नाम को बोधिसत्व की एक मूर्ति पर उकेरा। स्मिथ के इस खोज की खबर दुनिया में तेजी से फैलने लगी। फिर 1845 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ने मेजर रॉबर्ट गिल को यहां बनी चित्रों की प्रतिकृतियां बनाने के लिए नियुक्त किया। लेकिन रॉबर्ट गिल के लिए यहां काम करना आसान नहीं था क्योंकि यहां भीषण गर्मी और वन्य जीवों का खतरा होने के साथ ही भील आदिवासियों का भी खतरा था। भील आदिवासी काफी उग्र थे और उन पर न तो कभी किसी भारतीय शासक ने हमला करने की हिम्मत दिखाई और न ही आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेजी सेना ने। रस्सियों और सीडीओ की मदद से रॉबर्ट गिल गुफा के अंदर गए और वहां शानदार वास्तुकला और मूर्तिकला को देखकर हैरान रह गए। यहां बुद्ध की हजारों छवियां थीं, जो आज दुनिया में करोड़ों लोगों को एक सोच के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ग्रीक कलाओं से समानता। यहां बुद्ध की छवियों के अलावा कई जानवरों, आभूषणों, पहनावे को भी दर्शाया गया था। इनमें ग्रीक कलाओं की तरह समानता नजर आ रही थी, जिसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता है। यह इस बात की ओर इशारा करता है की भारतीय यूनानी संस्कृति का विस्तार करीब 400 ईसा पूर्व सिकंदर महान के दौरान हो गया था। फिर हेलेनिस्टिक काल में यह अफ़ग़ानिस्तान और भारत के व्यापारिक मार्गों के अलावा चीन और जापान तक तेजी से फैला। रॉबर्ट गेल ने अपने 27 कैनवास को दक्षिण लंदन के क्रिस्टल पैलेस में प्रर्दशित किया लेकिन 1866 में 23 कैनवास आग में जलकर राख हो गए। इसी बीच 1848 में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा गठित रॉयल केव टेम्पल कमीशन ने 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की नींव रखी और कुछ निडर विशेषज्ञ इस मुहिम में शामिल हो गए। कई पेंटिंग्स दीवार टूटने से बर्बाद हो गई थी तो कुछ को उन्होंने बचा लिया था। इसके बाद 1872 में बॉम्बे स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल जॉन ग्रिफिथ्स को नई प्रतिकृतियां बनाने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने अपने छात्रों के साथ मिलकर 300 चित्रों को बनाया। इसके बाद लेडी सिंघम ने कोलकाता स्कूल ऑफ आर्ट की मदद से 1909 में अजंता की गुफाओं की और प्रतियां बनानी शुरू की। इसके बाद हैदराबाद के इतिहासकार गुलाम यजदानी ने 1930 से 1955 के बीच अजंता की गुफाओं का व्यापक अध्ययन किया और अपने फोटोग्राफी सर्वेक्षण को चार भागों में दुनिया के सामने रखा। यजदानी के योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था। वहीं बीते दो दशकों में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने नई तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए हजारों साल पहले कलाकारों द्वारा इन चित्रों को बनाने की तकनीकों का खुलासा किया है। बताया जाता है की इन छवियों को बनाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में मिलने वाले लैपिस लाजुली जैसे कीमती पत्थर का इस्तेमाल किया गया था। नीले रंग के इस पत्थर को प्राचीन इतिहास में नवरत्नों का दर्जा हासिल है। माना जाता है की अजंता की गुफाओं को सातवाहन काल और वाकाटक काल दो अलग अलग कालों में बनाया गया है। इन गुफाओं की ऊंचाई 76 मीटर तक है। ये गुफाएं जातक कथाओं के जरिए भगवान बुद्ध के जीवन को दर्शाती है। इन गुफाओं को प्रमुख वाकाटक राजा हरिसेन के संरक्षण में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ही बनाया गया था। इतना ही नहीं, यहां चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान भारत आए चीनी बौद्ध यात्री फाह्यान और सम्राट हर्षवर्धन के दौर में आए ह्वेनसांग की जानकारी भी मिलती है। अजंता की गुफाओं में एक भाग में बौद्ध धर्म के हीनयान की झलक देखने के लिए मिलती है तो दूसरे में महायान संप्रदाय की। ज्यादातर गुफाओं में ध्यान लगाने के लिए कमरों के आकार अलग अलग हैं जिससे साफ है की ये कमरे एक महत्व के आधार पर बनाए गए होंगे। यहां छवियों को बनाने के लिए फ्रेस्को और टेम्परा दोनों विधियों का इस्तेमाल किया गया है। इन तस्वीरों को बनाने से पहले दीवारों को रगड़कर साफ किया जाता था, फिर चावल के मन, गोंद, पत्तियों और कुछ अन्य रसायनों का लेप चढ़ाया जाता था। सदियों बाद भी इन चित्रों की चमक पहले जैसी बनी हुई है। वहीं इससे करीब 100 किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाएं हैं। यहां कुल मिलाकर 34 गुफाएं हैं, जिनमें 17 ब्राह्मण, 12 बौद्ध और पाँच जैन धर्म से संबंधित हैं। इन गुफाओं को पांचवी से ११वीं सदी के बीच विदर्भ, कर्नाटक और तमिलनाडु के कई शिल्प संघों द्वारा बनाया गया है। हालांकि इसकी शुरुआत राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा हुई थी। यह गुफाएं वास्तुकला के रूप में भारत के विविधता में एकता को दर्शाती है। अजंता और एलोरा की गुफाओं में सबसे खास है भगवान बुद्ध की एक सोती हुई प्रतिमा। इस प्रतिमा की सुंदरता किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देगी। सच में अजंता की गुफाएं सदियों से निर्वाण का प्रवेश द्वार बनी हुई हैं।
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